________________
श्रीकृष्ण-कथा-प्रश्न म्नकुमार का जन्म और अपहरण
१६७ छोटे से मुख से निकली किलकारियाँ वासुदेव के कानो मे अमृत की बूंदे सी पड़ रही थी।
इतने में रुक्मिणी का रूप रख कर देव धूमकेतु आया और वालक को ले गया ।
थोड़ी देर वाद रुक्मिणी आई और वालक को मॉगने लगी । कृष्ण हैरान रह गए। - अभी-अभी तो तुम ले गई थी।
नही तो | मै तो अभी आई हूँ। -फिर वह कौन थी? --मैं क्या जान ? कृष्ण ने ठण्डी सॉस भर कर कहा
-रुक्मिणी । हमारे पुत्र का किसी ने हरण कर लिया। 'हरण' शब्द सुनते ही रुक्मिणी 'हा पुत्र' कह कर कटे वृक्ष के समान गिर पड़ी । गीतोपचार से सचेत हुई तो विलाप करने लगी।
शिशु के अपहरण से समस्त यादव दुखी हो गए।
हाँ, सत्यभामा के हृदय मे अवश्य ही लड्ड फूटने लगे। रुक्मिणी के पुत्र का अपहरण हो गया। अब अवश्य ही वह उसके केश कतरवाएगी। सत्यभामा की हार्दिक इच्छा तो थी कि घी के दिथे जलाए किन्तु लोक निन्दा के कारण अपनी खुशी प्रगट न कर सकी। हृदय तो उसका बॉसो उछल रहा था।
पुत्र की खोज मे यादवो ने जमीन आसमान एक कर डाले। जगह-जगह दूत भेजे गए। भरसक खोज कराई गई किन्तु शिशु का पता कही न लगा।
पता तो तव लगता जब शिशु आस-पास कही होता। वह तो पहुंच चुका था वैताढ्यगिरि के भूतरमण उद्यान की टक शिला पर।
शिशु के पूर्वजन्म का शत्रु धूमकेतु देव रुक्मिणी का रूप बना कर नवजात शिशु को वासुदेव कृष्ण के हाथो से ले गया था। वैताढ्य