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द्वारका-निर्माण
मथुरा से चली जीवयगा तो सीधी राजगृह पहुंची। स्त्री के दो ही तो प्रमुख सहारे होते है पिता और पति । पति की मृत्यु के पश्चात् जीवयगा पिता के पास जा पहुँची। ___ जरासध की राजसभा मे रोती हुई जीवयशा ने प्रवेश किया। उसके बाल खुले हुए थे, नेत्रो से अविरल अश्रुधारा वह रही थी, मुख म्लान था।
पिता ने पुत्री से रोने का कारण पूछा तो जीवयशा ने अतिमुक्त मुनि की भविष्यवाणी से कर कम की मृत्यु तक पूरा वृतान्त कह सुनाया । सुनकर राजनीति निपुण जरासध बोला - ___-कस से भूल हो गई । उसे देवकी को उसी समय मार डालना चाहिए था। न रहता बॉस न बजती वासुरी । देवकी ही न होती तो गर्भ कहाँ से आते ?
-उन्होने तो गर्भो की हत्या कर दी थी।-जीवयगा बोली।
–हाँ, छह हत्याएँ भी हुई और फिर भी सातवाँ गर्भ जीवित वच गया।
-यह तो वसुदेव और देवकी का छल था। उन दोनो ने मिलकर मेरे पति से विश्वासघात किया ।
-उस विश्वासघात का फल अव पाएँगे । तू दु ख मत कर पुत्री । मे कस घातियो को सपरिवार नष्ट करके उनकी स्त्रियो को रुलाऊँगा।
-मैं भी यही चाहती हूँ।
तेरी यह इच्छा पूरी होगी। जरासध ने पुत्री को आश्वासन देकर महल में भेज दिया।