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________________ कंस-वध मथुरा नगरी के द्वार पर ही उनके स्वागत के लिए कस की आज्ञा से पद्मोत्तर और चपक दो मत्त गजराज खडे थे। यह स्वागत उनको प्रसन्न करने के लिए नही वरन् प्राण-हनन के लिए था। दोनो भाइयो के समीप आते ही महावतो ने हाथियो को प्रेरित किया । दोनो पशु चिघाड कर उनकी ओर दौड पडे । यमराज के समान मतवाले गजराजो को देखकर कृष्ण ने बलराम से कहा –भैया | कस नगरी के द्वार पर यमराज हमारा स्वागत करने दौडे आ रहे है। -हम भी तैयार है। अभी यमराजो को यमपुरी पहुँचाये देते है । - वलराम ने हँसकर कहा। तब तक दोनो गजेन्द्र समीप आ गए। पद्मोत्तर गज कृष्ण के सम्मुख आ गया और चम्पक बलराम के। श्रीकृष्ण ने उछल कर उसके दॉत पकडे और एक ही मुष्टिका प्रहार से प्राणहीन कर दिया। उन्होंने उसके दॉत खोचकर निकाल लिए । वलराम ने भी इसी प्रकार चम्पक को निष्प्राण कर दिया। दोनो के अतुलित बल को देखकर नगरवासी चकित रह गए। १ श्रीमद्भागवत मे एक ही हाथी 'कुवलयापीड' नाम का बताया गया है। यहाँ वह रगभूमि (मल्लयुद्ध के अखाडे के चारो ओर बना हुआ मडप जहाँ सभी दर्शक, राजाओ आदि के बैठने का स्थान था) के द्वार पर खडा दिखाया गया है। श्रीकृष्ण ने रगभूमि के दरवाजे पर कुवलयापीड हाथी को खडा देखा तो महावत से बोले –'हमे शीघ्र ही रास्ता दे, अन्यथा हम तुझे
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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