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________________ जैन कथामाला भाग ३२ १५८ - भैया | यशोदा तुम्हारी माता नहीं है वह तो केवल तुम्हे पालने वाली है । इसके पञ्चात् बलराम ने देवकी के छह पुत्रो की कम के द्वारा मृत्यु का समाचार सुना दिया । भ्रातृ-वध सुनते ही कृष्ण कोधित हो गए और उसी समय कस को मारने की प्रतिज्ञा कर ली । किन्तु वलराम से फिर भी यह वचन ले लिया कि वे भविष्य में यशोदा को न दासी कहेंगे और न उनके प्रति ऐसे विचार रखेंगे। दोनो भाई स्नान करने के लिए यमुना में उतरे। वहां कालिया नाम का नाग रहता था । वह कृष्ण को दश मारने के लिए दौडा । उस महाभयकर सर्प के फण की मणि से प्रकाश निकल रहा था । जल के अन्दर प्रकाश देखकर बलराम सभ्रमित रह गए। तब तक नाग कृष्ण के पास आ चुका था । कृष्ण ने उसे कमलनाल के समान पकड़ लिया और उसकी नासिका नाथ कर कुछ देर तक उसके साथ क्रीडा करते रहे । जव नाग निर्जीव हो गया तो श्रीकृष्ण बाहर निकल आए । ૧ : १ (क) हरिवश पुराण के अनुसार यह प्रसग इस प्रकार है कृष्ण का अन्त करने की भावना से कस ने को एक विशेष कमल लाने का आदेश दिया । यह मे था जहाँ अनेक विपधर सर्प लहराते रहते थे । स्थान सामान्य पुरुषो के लिए दुर्गम था । गोकुल वासियो कमल उस ह्रद इस कारण वह उस ह्रद मे श्रीकृष्ण अनायास ही प्रवेश कर गए। उनके प्रवेश से कालिय नाग कुपित हो गया । वह महा भयकर था । उसके फण पर मणियो के समूह से अग्नि-स्फुलिंग जैसे निकल रहे थे । उस भयकर विपवर का कृष्ण ने शीघ्र ही मर्दन कर डाला और कमल को तोड कर शीघ्र ही तट पर आ गए गोपो ने कृष्ण की जय-जयकार की और वे कमल कम के सामने उपस्थित किए गए। उन्हे देखकर कस घवडा गया ।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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