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जैन कथामाला भाग ३२
(अनीकयगा, अनन्तसेन, अजितसेन, निहितारि, देवयशा और शत्रुसेन) की किलकारियो और वाल-लीलाओ से स्वय को धन्य समझने लगी और देवकी 'जीवित पुत्रो को जन्म देकर भी हतभागिनी बनी रही। अपने को मृतवत्सा मानती रही-यही तो था भाग्य का... चमत्कार।
एक रात देवकी ने- स्वप्न मे सिह, अग्नि, गज, ध्वजा, विमानऔर-पन मरोवर देखे । - उसी समय मुनि गगदत्त का जीव महाशुक्र देवलोक से अपना आयुष्य पूर्ण करके उसकी कुक्षि मे अवतरित हुआ। गर्भ अनुक्रम से बढने लगा। . .. . ..
- भाद्रपद मास की कृष्ण पक्षी अंप्टमी की अर्द्व रात्रि को देवकी ने एक श्यामवर्णी पुत्र को जन्म दिया। पुत्र-जन्म के साथ ही उसके समीप रहने वाले देवताओ ने कस के चौकीदारो को निद्रामग्न कर दिया। " "
. . देवकी ने पति को बुलाकर कहा
-नाथ | मेरे छह पुत्र तो इस कस ने मरवा ही डालें है । अब इस सातव पुत्र की तो रक्षा करो। - . . ..
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जव सुलमा का विवाह नाग गाथापति से हो गया तो वह 37. उसे और देवकी को एक साथ ही ऋतुमती करता और जव दोनो
के पुत्र उत्पन्न हो जाते तो उनकी अदला-बदली कर देता। (ख) वसुदेव हिण्डी मे देवकी के ही जीवित पुत्रो को मारने का स्पष्ट उल्लेख है।
(वसुदेव हिण्डी, देवकी लम्भक) न) भागवत के अनुमार देवकी के छह पुत्रो को कंस पटक कर मार
पिने
देता है। देखिए
हतेषु पट्पु बालेपु देवक्या औग्रमेनना।
(श्रीमद्भागवत १०।२।४)