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वासुदेव श्रीकृष्ण का जन्म
उदारता और सहृदयता का ऐसा कट परिणाम आयेगा-वसुदेव को स्वप्न मे भी इसकी कल्पना नही थी। किन्तु जो कुछ भाग्य मे लिखा था वह अनचाहे भी होगया । नियति पर मन को टिकाकर देवकी
और वसुदेव अव कस की निगरानी मे बदी का सा जीवन बिताने लगे। कस के पहरेदार वरावर दोनो पर नजर रखते थे। देवकी जब गर्भ धारण करती और पुत्र प्रसव करती उसी समय भद्दिलपुर निवासी नाग गाथापति की स्त्री सुलसा भी पुत्र प्रसव करती। दोनो का समय एक ही होता। देवकी के पुत्र जीवित होते और सुलसा के पुत्र मृत; किन्तु हरिणगमेपी देव अपनी वचनबद्धता के कारण उनको वदल दिया करता । देवकी के जीवित पुत्र सुलसा के अक मे खेलने लगे और सुलसा के मृत-पुत्रो को देवकी से छीनकर कस ने उनकी अन्तिम क्रिया करा दी।
इस प्रकार मृतवत्सा सुलसा' देवकी के उदर से उत्पन्न छह पुत्रो
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१. (क) सुलसा जब बालिका ही थी तब किसी निमित्तज्ञ ने बताया कि यह
कन्या मृतवत्सा (मरे हुए पुत्रो को जन्म देने वाली) होगी। सुलसा वाल्यावस्था से ही हरिणगमेषी देव की उपासिका थी । वह प्रतिदिन प्रात काल स्नान, कौतुक मगल आदि कर भोगी साडी से ही देव की उपासना करती।
-उसकी भक्ति से हरिणगमेषी देव प्रसन्न हुआ। कस ने देवकी के पुत्रो को मारने का निश्चय किया है-यह जानकर उसने सुलसा की इच्छा पूर्ति का वचन दिया।
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