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'एक लकडी का टुकडा होगा । उसमे वासुदेव के वश का नाश हो जायगा।' उपाय पूछने पर उन्होंने बताया-'इस लकडी को जलाकर उसकी राख नदी मे फेक देना।' किन्तु उसी राख से एरण्ड के पत्ते उत्पन्न हुए और उन्ही पत्तो से परस्पर लडकर सभी लोग मर गए। मुप्टिक मरकर यक्ष हुआ और वलदेव को खा गया। वासुदेव अपनी वहिन और पुरोहित को लेकर वन में निकल गया तो वहाँ जरा नाम के शिकारी ने सुवर के भ्रम मे शक्ति के प्रयोग द्वारा उसका प्राणान्त कर दिया।
इतनी कथा सुनाने के बाद बुद्ध ने कहा-उस जन्म में सारिपुत्र वासुदेव या, आनन्द अमात्य रोहिणोय्य और स्वय में घट पटित ।
घट जातक की इस कथा मे जैन और वैदिक कृष्ण चरित्र मे पर्याप्त अन्तर दिसाई पड़ता है। नामो मे भी काफी अतर है । जैसे-कस के पिता का नाम उग्रसेन न होकर मकाकस है। उसकी राजधानी भी मथुग न होकर अमित जन नगर है । वहिन का नाम भी देवकी न होकर देवागमा है। देवागभा के पति का नाम भी वसुदेव न होकर उपनागर है । यशोदा का नाम तो नदगोपा है और नद का नाम अधकवेण । इसमें कम और उपकस अत्याचारी नहीं दिखाए गए है वरन् देवकी के दसो पुत्र ही लुटेरे, निर्दयी और मर्वजनसहारक थे। उन्होने अपने मामाओ को मारकर उनका राज्य छीन लिया था। इसके अतिरिक्त जबूद्वीप के हजारो राजाओ का भी शिर चक्र से काट डाला था।'
इन विभिन्नताओ के वाबजूद भी नदगोपा और देवागम्भा का परम्पर पुत्र-पुत्रियो को बदल लेना, मुग्टिक और चाणर से युद्ध, कम की मृत्यु, देवागम्भा पर पहरा बिठाकर उमे बन्दी-जैसा बना लेना, द्वारका विनाश, द्वीपायन का अपमान, जराकुमार के द्वारा वासुदेव की मृत्यु कुछ ऐसे माम्य है, जो इमे स्पष्ट कृष्ण-कथा प्रमाणित करते है।
१ विस्तृत रूप से यह कथा घट जातक मे दी हुई है। इसके विस्तृत अध्ययन
के लिए भदन्त आनद कौशल्यायन द्वारा अनुवादित जातक कथाओ के चतुर्थ खड मे म० ४५४ की 'घट जातक' कथा देखिए।