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जैन कथामाला भाग ३१ अग्रज की आज्ञा पाकर वसुदेव अधेड स्त्री धनवती के साथ जाने ___ को तत्पर हुए तभी समुद्रविजय ने कहा
हम लोग शौर्यपुर मे तुम्हारी प्रतीक्षा करेगे।। वसुदेव ने सिर झुकाकर उसकी इच्छा स्वीकार की और धनवती के माथ गगनवल्लभ नगर जा पहुँचे। विद्याधर पति काचनदष्ट्र ने अपनी पुत्री वालचन्द्रा का विवाह बड़े सम्मानपूर्वक वसुदेव के साथ कर दिया।
राजा समुद्रविजय आदि सभी यादव कस के साय शौर्यपुर लौट आए और उत्सुकतापूर्वक वसुदेव की प्रतीक्षा करने लगे।
कुछ दिन गगनवल्लभ नगर मे रहकर वसुदेव अपनी स्त्री वालचन्द्रा को लेकर वहाँ से चल दिये।
उन्होने अन्य स्थानो से भी अपनी सभी स्त्रियो को साथ लिया और विद्याधरो के पक्तिवद्ध विमानो के साथ शौर्यपुर जा पहुँचे।
आगे बढ कर अग्रज समुद्रविजय ने अनुज का स्वागत किया और दृढ आलिगन मे बाँध लिया।
कुछ दिन तक सभी विद्याधरो का स्वागत सम्मान करके विदा कर दिया गया।
एकान्त मे समुद्रविजय ने वसुदेव से पूछा
-यहाँ से निकले तुम्हे सौ वर्ष हो गए। किस प्रकार व्यतीत हुआ यह समय।
वसुदेव ने इन सौ वर्षों का पूरा हाल कह सुनाया। भाभियो ने परिहास किया
-देवरजी । क्या किया परदेश मे रहकर, हमारे लिए क्या __ लाये?