________________
१०६
जैन कयामाला भाग ३१
ये गब्द सुनकर रोहिणी के कान खडे हुए। उसने पुन. ध्यान देकर सुना । यही शब्द ये । कोई भ्रान्ति नहीं । उमके कदम ढोल बजाने वाले बादक की ओर उठ गए । क्षण भर का ऑखे मिली और वरमाला ढोल-वादक के कठ मे सुशोभित होने लगी। ____ 'अनेक क्षत्रिय राजाओ के समक्ष एक वादक के गले मे वरमाला'! म्तभित रह गए सभी उपस्थित जन । कुछ को क्रोध आया तो किसीकिसी को परिहास भी मूझा । कोगला के गजा दन्तवक से नहीं रहा । गया वे कह उठे - खूब शिक्षा दी राजा रुधिर आपने कन्या को क्या उत्तम वर चुना है ।
किसी दूसरे की आवाज आई-पति ढोल बजाया करेगा और राजकुमारी सुन-सुन कर प्रसन्न होती रहेगी।
ऐसा मनोरजन करने वाला दूसरा कहाँ मिलेगा? -तीसरी दिशा से आवाज उठी।
--अरे, पुत्री ही क्यो पिता भी वाद्य-सगीत का आनन्द लिया करेगे ? -कुछ राजा बोल पडे ।
-हाँ भाई | हम लोगा मे ऐसी योग्यता कहाँ?--किसी ने फन्ती कर दी।
-ऐसी योग्यता न सही किन्तु इस वादक मे रोहिणी को छीन लेने की योग्यता तो है ही। -दन्तवक ने टेढ दाँत करके कहा ।
दन्तवक्र के इन शब्दो मे परिहास का वातावरण गभीरता मे बदल गया। हँसी के फव्वारे वन्द हो गए। नीरवता छा गई । राजा रुधिर का गभीर स्वर गूजा___ - सम्माननीय राजाओ | स्वयवर का नियम है कि जिसके गले मे वरमाला पड़ गई वही कन्या का पति हो गया, चाहे वह कोई भी क्यो न हो ? वर के चयन मे कन्या पूर्ण स्वतत्र होती है । आप लोग रोप न करे।
-तो क्या अपने अपमान पर वुशियाँ मनाएँ। इस ढोलची के गले का ढोल अपने गाने मे डाल कर गलियो मे इस गाथा को गाते फिरे कि