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धर्म-संकटके प्रश्न और उनका समाधान
जो व्यक्ति आचार्य भिक्षुके व्यापक, गम्भीर और गूढवादी टिकोणको धर्म-संकटके प्रश्नोंके रूपमे जनता के सामने रखते है, वे उनके विचारोंके साथ न्याय नहीं करते । धर्म-संकटके प्रश्न किसी भी सिद्धान्त के सामने खड़े किये जा सकते है किन्तु ऐसा करने मे सिद्धान्तकी सचाईकी परखकी भावना नहीं होती, उसमे सिर्फ सिद्धान्तको जनताकी दृष्टिमे नीचा दिखानेकी भावना होती है ।
उदाहरण के लिए आप कुछ पढिए
पानीके जीवोंकी घात करना पाप है, यह जैनोंका सर्वसम्मत सिद्धान्त है । भिन्न-भिन्न श्रद्धावाले लोगोंको उभाडनेके लिए इसे धर्म-संकटका रूप दियाजाए कि जैन लोग गंगा स्नान करनेको पाप चतलाते है, राज्याभिषेकको पाप बतलाते है ।
इसी प्रकार आगीकी हिंसा, वायुकी हिंसा, वनस्पतिकी हिंसा पाप है । उनको भी विकृत रूपमे रखा जा सकता है कि