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आचार्य भिक्षु की परम आध्यात्मिक दृष्टि
तेरापन्थके प्रवर्तक आचार्य भिक्षुने जैन-सूत्रोंके आधार पर जो विचार स्थिर किये, वे लोक-व्यवहारसे भिन्न है। ऐसा होना स्वाभाविक भी है। मोक्ष और संसारका मार्ग एक नहीं, तब दोनोंका आचार-विचार एक कैसे हो सकता है ।
आचार्य भिक्षु पारखी थे। गुणोके प्रति उनकी श्रद्धा थी किन्तुथी परखपूर्वक । उन्होने कहा, छद्मस्थ दशामें श्रमण भगवान् महावीरने गोशालकको वचानेके लिए लब्धि' का प्रयोग किया, वह उनकी मर्यादाके अनुकूल नहीं था। वे ऐसा कर नहीं सकते थे किन्तु रागवश करडाला।
जो व्यक्ति अपने श्रद्धास्पद देव और गुरुकी आलोचना कर मकता है, वह तत्त्वकी आलोचना न करे, यह संभव नहीं। १-असर्वज्ञ-अवस्था २-योगजन्य शक्ति