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[ ख ] आजका परिवर्तन आजकी पीढीके लिए नया होता है। वही बादकी दो चार पीढियोंके लिए पुराना यह क्रम सदासे चला आरहा है।
तेरापन्थके सिद्धान्तोंको गम्भीरतासे नहीं समझनेवाले कुछ व्यक्ति कहते है-ये सिद्धान्त अच्छे नहीं है। ये लोग परोपकार करनेका निषेध करते है।
तेरापन्थके सिद्धान्तको सहृदयतासे नहीं समझनेवाले कहते हैं इनके मूल सिद्धान्त परोपकारके निषेधक ही थे किन्तु
आचार्य तुलसीने उन्हें बदल डाला। __ प्रथम श्रेणीके व्यक्ति गम्भीरतासे देखें तेरापन्थ के सिद्धान्त परोपकारमे वाधा डालनेवाले नहीं किन्तु उसकी विविध भूमिकाओंका बोध करानेवाले है। आचार्य भिक्षुरचित कुछ गाथाएँ पढ जाइये - दान देता कहै तू मत दे इणनें, तिण पाल्यो निपेध्यो दानो। पाप हुंता नै पाप बतायो, तिणरो छ निर्मल ज्ञानो ॥ असजती नै दान दिया में, कहदियो भगवत पापो। त्या दाननै वरज्यो निषेध्यो नाही, हुती जिसी कीधी थापो॥ साधुने वरज्यो तिण घरमें न पैसे, करडा कह्या तिण घर माहि जावे । निपेध्यो ने करडो वोल्या ते, एकण भाषा में न ममावै ॥ ज्यू कोई दान देता वरज राखै, कोई दीघा में पाप बतावै । ए दोनू इ भाषा जुदी जुदी छै, ते पिण एकण भाषामें न समावै ।।
(व्रताव्रत ३ । ३६,४०, ४२, ४३)