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* सप्तम परिच्छेद *
द्रौपदी का चीर हरण
दुर्योधन की आज्ञा पा कर प्रातिकामो रनवास मे गया और द्रौपदी को प्रणाम करके बोला- "रानी जी ' आप को महाराज दुर्योधन ने इसी समय सभा मण्डप में बुलाया है।"
उस समय प्रातिकामो के मुख पर खेद के भाव छाये हुए थे, उसकी बात सुन कर शोक विह्वल चेहरा देख कर द्रौपदी ने आश्चर्य चकित हो पूछा- ' क्या कह रहे हो तुम ?- क्या मुझे सभा मण्डप मे बुलाया है ? और वह भी दुर्योधन ने ?" ।
गरदन झुकाए हुए प्रातिकामी बोला-जी हा, जी हाँ, महा राज युधिष्ठिर जुए मे आप को हार चुके है। अव श्राप दुर्योधन की दासी हो गई हैं, आप को महल मे झाड़ देने का काम करना होगा। इसो आज्ञा को सुनाने के लिए आप को सभा मे बुलाया गया है।"
प्रातिकामी की बात सुनते ही द्रौपदी भौंचक्की सी रह गई, जैसे उन के कानो मे किसी ने शूल ठोक दिए हो। उस के हृदय पर वज्राघात हुआ, कुछ देर तक वह मूर्तिवत खडी रह गई । जो पाचाल देश की राजकुमारी, ऐश्वर्य और वैभव मे जीवन व्यतीत करने वाली पुष्पी से भी अधिक नाजक, प्रेम और वात्सल्य के सरोवर में पनपी कर्मालनि दास दासियो से सेवित रानी द्रौपदी को अनायास ही ऐसी बात सुनने को मिली कि जिसकी स्वप्न मे भी कल्पना न की