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गांधारी की फटकार
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उसी के वशीभूत होकर तुम्हे अपने पुत्रो के प्रति शोक है, पर तुम साधारण स्त्री तो नही हो । तुम्हें तो उच्चादर्श प्रस्तुत करना ही शोभा देता है।"
। गांधारी ने उत्तर दिया-"मैं जानती हूं कि पुत्रों के वियोग । के कारण मेरी बुद्धि अस्थिर हो चुकी है. परन्तु फिर भी पाण्डवो के . सौभाग्य पर मैं ईर्ष्या नहीं करती। आखिर वे भी मेरे लिए पुत्रो के . ही समान हैं। मैं जानती हूं कि दुःशासन और शकुनि ही इस कुल
के नाश के मूल कारणं थे, परन्तु श्री कृष्ण ने शकुनि तथा दुःशासन द्वारा प्रज्वलित अग्नि को हवा दी और वह ज्वाला दावानल बन गई । मुझे यह भी विदित है कि अर्जुन तथा भीम निर्दोष है । अपनी सत्ता के मद में आकर मेरे पुत्रों ने यह विनाशकारी युद्ध छेडा था और अपने अत्याचारी कर्मों के कारण मारे भी गए । परन्तु एक बात का मुझे बहुत खेद एव शोक है। श्री कृष्ण की कृपा से दुर्योधन और भीम सेन मे गदा युद्ध हुआ, यहाँ तक तो ठीक है । लेकिन कृष्ण के सकेत पर भीम सेन ने कमर के नीचे गदा मार कर गिराया, यह मुझ से नहीं सहा जाता।" . भीम को इस बात का दुःख था कि उसने दुर्योधन को अनीति से मारा है । गांधारी की बाते सुनकर वह क्षमा याचना करते हुए बोला-"मा! युद्ध मे अपने बचाव के लिए क्रोध वश मुझ से ऐसा हुआ, वह धर्म हुआ या अधर्म, आप इसके लिए मुझे क्षमा कर दे। उस समय मैं क्रोध मे था, क्रोध से पाप होते हैं, मुझ से भी यह पाप हुआ। मैं यह स्वीकार करता हूं कि धर्म-युद्ध करके मैं दुर्योधन को परास्त नही कर सकता था, और दुर्योधन की ओर से युद्ध मे वार बार अधर्म हुआ, बार बार युद्ध-नियमो का उल्लघन होता रहा, बस इसी कारण मैं भी अधर्म कर बैठा । पर यह तो सोचिये कि मेरे द्वारा की गई अनीति की जड क्या थी । दुर्योधन ने युधिष्ठिर को जुए के खेल में फंसा कर हमारा राज्य छीन लिया और दुःशासन ने भरी सभा में द्रौपदी का अपमान किया, इससे हमारे हृदय धधक उठे। तेरह वर्ष तक हम दुर्योधन की अनीति के कारण उत्पन्न हुई क्रोध की चिनगारी को छिपाये रहे। प्रगट होने पर हम ने सिर्फ पांच गाव मागे, उसने सुई की नाक जितनी भूमि भी देने से इन्कार