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* चवन्नवां परिच्छेद *
9888888888889 Y गांधारी की फटकार - 8888888888888
सजय धृतराष्ट्र का एक प्रकार से दाया हाथ था, वह सदा उसके साथ रहता था, उनके समस्त रहस्य सजय को ज्ञात थे। कहते है वह प्रतिदिन कुरुक्षेत्र के युद्ध का वर्णन जाकर धृतराष्ट्र को सुनाया करता था। वैष्णवो के मतानुसार महाभारत के सारे युद्ध का वृतात उसी का कहा हुअा है । जो भी हो सजय था धृतराष्ट्र का आत्मा ही।
जव वृद्ध धृतराष्ट्र अपने बेटो के शोक मे आँसू बहा रहे थे, तब सजय उन्हे धैर्य वधाता हुआ बोला-' महाराज | पाप जैसे वयो वृद्ध और अनुभवी व्यक्ति को समझाने की क्या आवश्यकता ? आप तो स्वय समझदार और जानकार हैं , आप जानते ही हैं कि जो होना था वह हो गया। मृत वीरो के लिए आसू बहाने से कोई लाभ नही है । अव तो धैर्य ही एक मात्र उपाय है । प्रत्येक प्राणी अपने कर्मो का फल भोगता है। मृतात्मायो को आपके पासुनो से कोई लाभ नही पहुच सकता। इसलिए आप शात हो जाईये और अपने मन को समझाईये।"
विदुर जी भी उस समय धृतराष्ट्र के पास पहूच गए। उन्होने कहा-"आपके इन वेटो को मैंने बहुत समझाया, पर वे न माने। इसी का कारण है कि आज उनकी यह गति हुई । तो भी हमे यह जान लेना चाहिए कि आत्मा अजर अमर है । यह गरीर अनित्य है। किसी न किसी दिन शरीर का नाश होता ही है। जो लोग इस युद्ध मे मारे गए है, वे वीर गति को प्राप्त हुए है । उनके लिए ग्रामू