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अश्वस्थामा
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तक किसी ने प्रहार नही किया–पर सम्भव है यह मेरे उस कर्म का फल हो जो मैंने द्रोण के साथ किया था । हाय ! मैं युद्ध जीत कर भी बुरी तरह हारा । अव द्रौपदी के दिल पर क्या बीतेगी ? मेरी दशा उस पाजी की सी हो गई जो महा सागर को तो सफलता पूर्वक पार कर लेता है,पर अन्त मे छोटे-से नाले मे डूबकर नष्ट हो जाता है ।
श्री कृष्ण उन्हे सांत्वना देते हए बोले-"महाराज युधिष्टिर ! व्यर्थ शोक करने से क्या लाभ ? जो होना था हो गया। मरता क्या न करता की लोकोक्ति को चरितार्थ करते हुए अश्वस्थामा ने यह मव कुछ किया है। उसने जो कुछ किया वह अपनी आत्मा के साथ ही अन्याय किया हैं । वीरो का कर्तव्य है कि वे खोकर दुखी और पाकर प्रफुल्लित न हो । आप तो धर्म राज है । आपको विलाप करना शोभा नहीं देता। जो हुआ. उसे भूल जाओ।"
द्रौपदी की दशा तो बडी हो दयनीय थी । जव उसने अपने वेटो के मारे जाने का समाचार सुना, वह सन्न रह गई। पागलो की भाति अपने व ल नोचने लगी, कपडे फाडने लगी। बडी कठिनाई से उसे होश मे लाया गया। तव वह बल खाती नागिन की भाति जल्दी से पाण्डवो के पास पहुंची और उसने गरज कर कहा-"क्या आप लोगो मे कोई भी ऐसा नही है जो मेरे पुत्रो की हत्या का बदला ले सके ?"
इस चुनौती के उत्तर मे भीम सेन कडक कर वोला-“जव तक भीम सेन जीवित है । तुम्हे किसी प्रकार की चिन्ता नही है । मैं शपथ लेता हूं कि कोई मेरा साथ दे अथवा न दे जव तक तुम्हारे पुत्रो के हत्यारे अश्वस्थामा से बदला न ले लंगा, तब तक चैन से न वैठगा ।"
भीम सेन की इस भीष्म प्रतिज्ञा को सुनकर एक बार तो सभी सन्न रह गए । परन्तु फिर उसकी प्रतिज्ञा को पूर्ण कराने के लिए सभी उसके साथ चलने को तैयार हो गए। सभी भ्राता अश्वस्थामा की खोज मे निकल पडे । ढूढते ढूंढने आखिर उन्होने गंगा के तट पर व्यास के आश्रम मे छुपे अश्वस्थामा का पता लगा ही लिया और जाकर उसे घेर लिया।
अश्वस्थामा और भीम सेन मे युद्ध छिड़ गया । दोनों वीर