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जैन महाभारत
हुआ हार लिया। जिसकी कई लडिया थी । और दुर्योधन के निकट पहुंच कर कह । - " दुर्योधन ! नग्नावस्था में कहाँ चल दिए, "
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"माता जी के पास जा रहा हू ।" दुर्योधन ने सत्य ही कहा । " माता के पास जा रहे हो और नग्नावस्था मे ? वड आश्चर्य की बात है ।" श्री कृष्ण ने ग्राश्चर्य प्रगट करते हुए कहा ।
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" बात ही कुछ ऐसी है ” – केशव समझ गये और विचार किया की हारे हुये शत्रु का विश्वास नही करना चाहिए और दाव नही देना चाहिये -
कोई भी बात हो पर गुप्तागो को तो ढक लिया होता । लो यह पुष्प हार पहन लो जिससे जधायों का भाग ढक जाये । तुम्हारा उद्देश्य भी पूरा हो जायेगा और व्यवहार धर्म भी निभ जायेगा उसने खुशी खुशी हार पहन लिया ।
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माता के पास जाकर उसने अनुनय विनय की । गाधारी ने अपनी आखो की पट्टी उतार डाली और उस पर दृष्टि डाली । गले मे पड़ी पुष्प माला देखकर बोली - "मूर्ख ! तूने यह क्या किया ? यह हार गले मे व्यो डाल लिया ?"
"लाज के मारे ।”
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'कही तुझे रास्ते मे श्री कृष्ण तो नही मिल गए थे ? " गांधारी ने शक्ति होकर पूछा ।
"हा. उन्होने ही तो मुझे यह माला पहनाई है ।" “मूर्ख ! बस उन्होने तुझे माला क्यो पहनाई तेरे प्राण ही हर लिए।"
"वह क्यो ।”
"पगले ! माता ने कहा- फूलों से ढकी जंघाओ पर हो शत्रु वार करेगा और याद रख इसके कारण तेरी मृत्यु होगी ।" "यदि मैं अत्र पुष्प मालाए उतार फेंकूं तो
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" अव क्या होता है । वह वही समय था पट्टी जा श्री कृष्ण इस अवसर पर भी तुझे मात दे गए मेरी दृष्टि से तू लाभ न उठा पाया ।”
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उतारने से । मुझे खेद है कि