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दुर्योधन का अन्त
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आवश्यकता नही है। तुम चाहो तो तुम मे अब भी ऐसी शक्ति प्रा सकती है कि कोई शत्रु तुम्हे न मार सके । किन्तु बदला लेने की भावना छोड दो सर्वज्ञ जिन देव का कथन है की बदला लेने की भावना वाला उतना ही कर्मवर्धन करता है, पार्थ विस्मय पूर्वक दुर्योधन ने पूछा-"क्या कह रहे है प्राचार्य जी । क्या वास्तव मे कोई ऐसा उपाय भी है कि मैं शत्रुओ द्वारा न मारा जा सकू?" " "हा हा तुम्हारे घर ही एक ऐसी सन्नारी है, बल्कि देवी है, जिसकी दृष्टि तुम्हारे जिस अग पर पड जायेगी, उसी अग पर शत्रु का कोई शस्त्र या अस्त्र असर न कर सकेगा।" कारण ससार का वरणक हस्त स्पष्ट नही देखता नीची भावना से शुभ प्रकृति संग्रह है ऐसा जिन देव भगवान का कथन है वह शुभ प्रकृति नत्रो
ओर भावना द्वारा तुम्हे आयेगी फिर कोई शस्त्र अस्त्र असर नही करेगा।- "कौन है वह देवी । मुझे शीघ्र बताईये।"
"वह है तुम्हारी जननी, गाधारी । वह पतिव्रता नारी यदि तुम्हारे शरीर पर एक बार दृष्टि डाल दे तो तुम्हारा शरीर इस्पात का हो जायेगा । परन्तु तुम्हे उसके आगे विल्कूल नग्नावस्था मे जाना होगा।"-कृपाचार्य ने कहा । ।
“पर मेरी माता की पाखो पर तो पट्टी बन्धी रहती है, वे कभी अपनी आखो से पट्टी खोलती ही नहीं. वे अपनी पट्टी खोल सकेगी ?"
"हा, हा पुत्र प्रेम के कारण वे ऐगा कर सकती है।" "पर मैं उनके सामने नग्न कसे जाऊ?''
"यदि तुम्हे अपने प्राणो की रक्षा करनी है, तो यह करना ही होगा."
कृपाचार्य के शब्द सुनकर दुर्योधन सोचने लगा कि वह क्या करे। बहुत देरि तक वह सोचता रहा और अन्त मे उमने वैसा ही करने का निश्चय कर लिया।
नग्न होकर वह अपनी माता के पास चला । श्री कृष्ण ने उसे देख लिया और वे समझ गए कि दुर्योधन वैमा क्यों कर रहा है । उन्होने तुरन्त ही एक बहुत बडा, बडे बडे मोटे पुष्पों मे बना