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जैन महाभारत ।
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- यह कहते अर्जन ने पैतरे वदल कर ऐसे तीक्ष्ण वाण चलाये, कि उनकी मार से क्षण भर मे ही दुयोधन के रथ के घोड धाराशायी हो गए। सारथि नीचे लुढक गया और रथ चूर चूर हो गया कुछ ही देरि मे दुर्योधन का धनुष भी अर्जुन ने काट डाला। दस्ताने फाड डाले और दुर्योधन के शरीर का वह भाग जो कवच से ढका नही था, अर्जन के बाणो से विध गया । अर्थात जिन वस्तुओ व भागों पर अभिमन्त्रितं कवच नही था; अजुन के बाणो की मार उन्ही पर अपना रंग दिखा गई। । अर्जुन के बाणो से दुर्योधन के हाथ, पाव, नाखून, उगलियां तक बिंध गए और अन्त में दुयोधन को हार माननी पडी । वह समर भूमि मे पीठ दिखा कर भाग खडा हा । श्री कृष्ण ने पाचजन्य वाया और बड़े जोर से विजय नाद किया। " । जयद्रथ की रक्षा पर नियत वीरों ने जब यह देखा उनके दिल एक बारगो दहल उठे। पर मरता क्या न करता की लोकोक्ति के अनुसार भूरि श्रवा कर्ण, वृषसेन; शल्य, अश्वथामा, जयद्रथ आदि आठो महारथी अर्जुन के मुकाबले पर आगए । परन्तु अजुन ने गाण्डीव की एक टकार करके उनकी सेना का दिल दहला दिया। वाण वर्षा आरम्भ हो गई।
, दुर्योधन को अर्जुन का पीछा करते देख कर पाण्डव सेना ने शत्रुनो पर और भी जोर का आक्रमण कर दिया । घृष्टद्युम्न ने सोचा कि जयद्रथ की रक्षा करने यदि द्रोणाचार्य भी चले गए तो वड़ा अनर्थ हो जायेगा । इसलिए उन्हे रोक रखना चाहिए । इसी उद्देश्य से उसने द्रोण पर लगातार अाक्रमणं जारी रखा । घृष्टधुम्न की इस चाल के कारण कौरव सेना तीन भागो' में विभाजित होकर कमजोर पड गई। . . . .
एक बार अवसर पाकर धृष्टद्युम्न ने अपना रथ द्रोण के रथ, से टकरा दिया। दोनों के रथ एक दूसरे से भिड़ गए। दोनो.रथ पास पास खड़े बड़े ही भले प्रतीत हो रहे थे। धृष्ट गुम्न ने अपने धनुष:वाण फैक दिए और तलवार लेकर द्रोण के पर जा चढा और उन पर उन्मत होकर प्रहार करने लगा। वह तो था उनका जन्म का वैरी ।
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