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________________ जयद्रथ वध रखता है। अस्त्र विद्या का कुशल जानकार है। जोश के साथ युद्ध करेगा। शरीर का गठोला और बलो है तनिक सावधानी से गाण्डीव के कमाल दिखाना।" यह कह कर श्री कृष्ण ने रथ घुमा दिया और अर्जुन ने एका एक दुर्योधन पर हमला कर दिया। इस आचानक अाक्रमण से दुर्योधन तनिक भी न घबराया वल्कि गरज कर बोला-',अर्जुन ! सुना तो वहुत है कि तुम बडे 'वीर हो, वीरोचित र माचकारी कृत्य तुम ने किए हैं, किन्तु तुम्हारी वीरता का सही परिचय तो हम अब तक मिला नही है । जरा देखें तो सही कि तुम मे कौन सा ऐसा पराक्रम है कि जिसकी इतनी प्रशसा सुनने मे आ रही है " तनिक सो गरमी पाकर या शरद ऋतु मे बर्फानी हवा से जैसे कच्चे चमडे का जूता है, इसी प्रकार देवी कवच पाकर दुर्योधन अकड गया था। और दोनो मे घोर सग्राम छिड गया । . बहुत देर तक दोनो एक दूसरे पर बाण वर्षा करते रहे । फिर भी दुर्योधन उसी प्रकार डटा रहा । गाण्डीव से निकले प्राण वाण उसका कुछ न विगाड रहे थे तब श्रीकृष्ण ने विस्मय पूर्वक कहा"पार्थ । यह कैसे पाश्चर्य की बात है कि जो वाण वलिष्ट लोगो के प्राण ले लेते हैं, उन्ही का दुर्योधन पर कोई प्रभाव नही हो रहा। गाण्डीव से निकला बाण और उसका शत्रु पर कोई प्रभाव न हो । आश्चर्य की बात है । मुझे तो कभी ऐसी आशा न थो । अर्जुन ! कही तुम्हारी पकड में ढील तो नही रहती ? भुजारो का बल तो कम नही हो गया ? गांण्डीव का तनाव तो स्वाभाविक है ? फिर क्या बात है जो तुम्हारे वाण दुर्योवन पर असर नहीं करते ?" . अजुन ने कहा-"मधु सूदन ! लगता है द्रोण ने अपनाअभिमन्त्रित कवच इसे दे दिया है उसी को दुर्योधन पहने हुए है । प्राचार्य ने इस कवच का भेद मुझे भी बताया था । यही कारण है कि मेरे वाण उस पर असर नहीं करते । यह उसी के वल पर साहस बाँध अभी तक रुका है। फिर भी आप अभो ही देखिथे कि दूसरे के कवच को शरीर पर लादे, लदे बैल की भाति खडे दुर्योधन का क्या दशा होती है ?"
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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