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अर्जुन की प्रतिज्ञा
है। ऐमा लगता है मानो वीर बालक मेरी आखो के सामने अदभ्य उत्साह से शत्रु के व्यूह को ओर बढ़ रहा है और कह रहा है"ताऊ जी ! आप चिन्ता मत करें यह शत्रु-तो कुल मिला कर भी मेरी शक्ति के सोलहवें भागे के बराबर भी नहीं, मैं अभी ही उन्हें मार भगाता हू।"-प्रोह! किस उत्साह से बह-गया । पलक झपकते ही उस ने कोरवो का व्यूह तोड कर अपने लिए मार्ग बना लिया। ओर हम सेवः मिल कर भी उस व्यह में प्रवेश न कर सके । पापी अमद्रयाने मुझ से मेरे वीर बालक को छीन लिया।"
, " , सात्यकि बोला-राजन् । अब इस शोक से क्या लाभ धैर्य रखिये। अर्जुन उन दैप्टो में से एक एक से अभिमन्यु की हत्या को बदला लेगा पाप की ही यह दशा है तो सोचिये कि उस की क्या दशा होगी, - अभिमन्य जिम के दिल का टुकडा था 'अर्जुन अभी आता ही होगा। आप ही हैं जो उसे सान्त्वना दे सकते है। इस लिए सम्भलिए और अर्जुन को धैर्यःचन्धाने के लिए तैयार हो जाईये । उस वोर बालक की मृत्यु पर आसू वहाना आप को शोभा नही देता आप' को तो गर्व होना चाहिए कि आप के परिवार का एक वालक सारी शत्रु सेना को नाको चने चबा गया और यदि शत्रु दल अधर्म पर न उतरता, तो वह विजय पताका फहराता हुग्री सौटता।"
"आप जो कह रहे हैं अक्षरशः सत्य ।। पर मैं क्या करू दिल तोनही मानता। मैं सोच रहा ह कि जब राजकुमारी उत्तरा विधवा के वेश मे बाल खोले हए मेरे सामने से निकलेगा तो में अपने हृदय का कटने से कसे रोकगा? सुभद्रा के नेत्रों से वहती प्रभूधारा को कैसे रोकगा। वह दोनो सन्नारीया मुझे जीवित देखकर क्या कहेगी? यही ना कि राज्य पाने के लिए स्वयं तो जीवित रहा, पोर अभिमन्यु की बलि दे पाया। दुख-विह्वल होकर युधिष्ठिर ने कहा। । द्रुपद बोले-'राजन | मौत में किसका चारा है, कौन है मा मृत्यु को रोक सके। मौत-किसी-के-टाले नही टलती। एक दिन सब ने मरना ही है। आप कर ही क्या सकते थे। जिन भगान.के वचन अटल हैं
जान हो लेने की हिकमत में तरक्की देखी, . मौत का रोकने वाला कोई पैदा न हुमा।"