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जरासिन्ध वध
सान युद्ध होता रहा। जब वसुदेव ने देखा कि कणं इस प्रकार परास्त होने वाला नहीं है तो उसने गरज कर कहा-"अो सूत पुत्र तू ऐसे नही मानेगा। ले तुझे भस्म किए देता हू ।" यह कर अनिल बाण मारा परन्तु कर्ण का सहायक देव था, वह तुरन्त ही वहा से लुप्त हो गया और तत्काल जल ला कर उसने अग्नि वाण को प्रभाव हीन कर दिया। तव वसुदेव समझ गए कि कर्ण भी एक दीव्य शक्ति रखता है।
तभी नारद जी आ पहुचे, उन्होने वसुदेव से कहा-“वसुदेव! मुकाबले के वीर के साथ नागकुमार है, इसी लिए तुम्हारे वाण उसका वाल वाका नही कर सकते, अत कुछ करना है तो नाग कुमार का कुछ करो।" फिर मातली देव (साथी के साथ पा कर नारद जी बोले-पाप यहा हैं और वहा कर्ण नाग कुमार के सहयोग से भयकर युद्ध कर रहा है । ऐसा कभी न देखा होगा, तनिक वहां जाकर देखो।"
. मातली देव तुरन्त वसुदेव के रथ पर या बैठा, नाग कुमार मातली देव को वसुदेव के सारथी रूप में देख कर भाग खडा हया। इतने मे ही मूर्य अस्त हो गया, सग्राम वन्द कर दिया गया और दोनो वीर अपनी अपनी सेनाओ मे जा मिले।
हस नामक मत्री ने जरासिन्ध से कहा-महाराज | अभयदान मांगता हू, तब आप से विनती करता हूँ कि यह सग्नाम आपके लिए मुसदायक नहीं है, इस मे जो नर सहार हो रहा है, उसका दोष प्रापके सिर मढा जायेगा। आप चाहे तो अभी ही यह सग्राम रुक सकता है, और सहस्रो बहनो के मुहाग की रक्षा हो सकती है ।"
पाहते हैं जब गंगाल की मौत ग्राती है तो वह पाम की ओर भागता है, जब मृत्यु निकट होती है, मस्तक फिर पाता है, ज्वर ने पीड़ित व्यक्ति को भोजन रुचि कर नही होता शठ को ज्ञान भला नहा लगता, इसी प्रकार जरासिन्ध को ममी की बात बड़ी नवी नगो, उसके नेत्रों में रक्त उतर पाया, बोला- "म देन न्हा ह