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बारहवां दिन
खाकर इनका नशा तो चूर कर दो।" ।
इधर पाण्डव तथा कौरव सेनाएं एक दूसरे को परास्त करने लिए भीषण संग्राम कर रही थी और उधर अर्जुन ने भिगर्त शवासी सैनिको पर इतना भयकर आक्रमण किया कि देखते ही खते उनके सिर पर चढा, व्रत का भूत हवा हो गया । अर्जुन के तीक्ष्ण बाणो से भिगतों का सारा उत्साह भग हो गया ।' एक वार जो अर्जुन ने. अग्नि बाण मारा. और उसकी लपटे . जो विशले विषधरो की लपलपाती जिव्हारो की भाति लपलपाई, भिगर्तदेशीय सशप्तक विचलित हो गए। सभी के मुह पर घबराहट नृत्य कर गई । अपने संनिको को भयभीत देखकर सुशर्मा ने ललकारा
- "शूरवीरो। याद रखो। तम ने क्षत्रियो की भरी सभा मे शपथ खाकर व्रत धारण किया है। घोर प्रतिज्ञा कर चुकने और प्राणो का मोह त्याग चुकने के बाद भय-विह्वल होना. तुम्हे शोभा नहीं देती। तुम कही मैदान से यू ही बापिस चले गए, तो लोग - तुम्हारी हसी उडायेंगे। कोई तुम्हे पास भी न बैठायेगा। डरो नहीं। आगे बढो। तुम इतना बडी संख्या मे हो और शत्रु अकेला है। आगे बढो और प्राणो की वलि चढ़ा दो। या शत्रु का वध कर डालो। अरे. यदि तुम-अर्जुन को बाटने बैठो तो एक एक बोटी भी एक एक के भाग मे न पड़े।
' यह कहकर सुशर्मा ने शख:नाद किया, फिर सैनिक भी एक दूसरे को-प्रोत्साहित करने लगे। कितने ही शख एक साथ वज उठे और फिर भयानक युद्ध प्रारम्भ हो गया। , दोनो ओर से बाण वर्षा होती रही, पर भिगर्त नरेश के संशप्तक सैनिक हटे नही, तब अर्जुन ने श्री कृष्ण से कहा-"मधु सूदन ! लगता है सुशर्मा की चेतावनी नव स्फूर्ति प्रदान करने मे सफल हो गई। अब जब तक, इनके तन मे प्राण हैं यह हटेंगे नहीं, इस लिए आप भी तनिक उत्साह में आ जाईये । हमे झिझकना नहीं है, इन्हे यमलोक पहुंचाना ही होगा।" . श्री कृष्ण पूर्ण कुशलता से रथ चलाने लगे। उस समय उन्हो ने ऐसी अद्भुत कुशलता का परिचय दिया कि शत्रु भी दातों तले उगली दबाते रह गए और अर्जुन के गान्डीव का कमाल तो देखने