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________________ ४१४. जन-महाभारत है। कुछ मुझाई ही नहीं देता।" स्पष्ट है कि बोलने वाला बीर अर्जुन है, जिसकी आवाज़ कुछ थकी सी है। ऐसी कि प्रतीत हाता है मानो कोई थका मादा पधिक कह रहा हो 1. .. . - - " मधु मूदन बोले -"पार्थ! युद्ध मे जहां शौर्य, रण कौशल भुज अल और 'सैन्य बल की आवश्यकता होती हैं, 'वहीं प्रात्म विश्वास और साहम भी नितान्त परमावश्यक है। यह युद्ध जो तुम कर रहे हो समार के सभी, युद्धो मे भयानक और महान है। भरत क्षेत्र के समस्त योद्धा एक दूसरे के विरोध मे.ग्रा डटे है विश्व के , प्रमिद्ध रग कौशल प्रवीण, धूरधर धनुर्धारी, रण विद्या के आचार्य, महान वीरवर और परम-प्रतापी, अनुभवो, दिग्गज योद्धा लड रहे है। अमख्य वोगे के इस युद्ध मे विजय प्राप्त करना आसान नहीं - है फिर भी विश्वाम रक्खो कि विजय तुम्हारी हो होगी क्योकि न्याय कभी परास्त नही हमा। अन्यायी शुभ प्रकृत्तिवान विद्यावानो के प्रताप से अभी तक टिके हुए है। परन्तु जैसे मेघ. खडो से. ज्योतिवान सूर्य भी छप जाता है, इसी प्रकार अशुभ प्रकृति में कौरवो के अण्यायो के कारण उन शुभ कर्म वाले योद्धाओ का भी ह्रास हो जायगी, जो शुद्ध विचारों के लिए प्रसिद्ध हैं। धैर्य से काम लो। योग से हो मदा किसी महान वस्तं की प्राप्ति होती है। न्याय के लिए एक पुत्र तो क्या सहस्त्र पुत्रो की भी बलि दी जा मकती है।" - श्री कृष्ण की बात सुन कर अर्जुन के टूटते माहस को कुछ वन मिला, फिर भी उसे निरामा मे पूर्णतया मुक्ति न मिली।' पूछा "परन्तु केशव | मुझे ऐमा लगता है कि पितामह जैसे धुराय वान और परम प्रतापी शूरवीर के रहते हमारः विनये असम्भव है । नौ दिन में अकेले वही कोरवो की नौका की डूबने से बचाते रहते है। जब जब हमारे भयकर प्रहार से कौरव सेना का साहम टूटा, तब तव भीम जी ने प्राकर- उन्हे पुनजीवित कर डाला और उनके पने बाणो मे हमारे सैनिकों का सहार हुया इस लिए कोई युक्ति ऐसी बताई जिस से हमार रास्ते मे खडा यह मेरू पर्वत हट जाये । "" .. .... . .. __: 'प्रश्न- बड जटिल था, कुछ देर के लिए पूर्ण निस्तब्धता बा
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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