________________
आठवाँ दिन
विचित्र पराक्रम प्रदर्शित किए जाने लगे। वाणी की वर्षा से सावनभादो मे लगी मेघ वर्षा का दृश्य उपस्थित हो गया। शूर भगदत्त ने पहले भीमसेन को अपने वाणो का लक्ष्य बनाया। परन्तु भीमसेन अपने ऊपर हो रही वाण वर्षा से तनिक भी विचलित नही हुआ । उस ने बार बार सिंहनाद किए, जिन्हे सुनकर भगदत्त हाथी के परो की रक्षा करने वालो सेना के वीरो का उठता भीमसेन कुपित होकर पहले उन्ही पर टूट पडा भगदत्त के बाणो से अपनी रक्षा करना दूसरी ओर हाथी को मारना, यह क्रम उस ने इस प्रकार बांधा कि देखते ही से अधिक गज रक्षक यमलोक सिधार गए और भीमसेन भी वीका न हुआ ।
।
T
४३१
·
के लडाकू
हृदय काप
एक ओर के रक्षको देखते सौ
का बाल
यह देख भगदत्त कुपित हो गया । उसने अपने हाथी को भीमसेन के रथ की ओर बढाया । निकट था कि भगदत्त का खूनी हाथी भीमसेन के रथ को अपनी सूण्ड से तोड देता, पाण्डव वीरो ने झट से उसे चारो ओर से घेर लिया । और गजराज व भगदत्त पर वाण वर्षा श्रारम्भ कर दी। चारो ओर से घिरे होने पर भी वह किंचित मात्र भी भयभीत न हुआ । अप पूर्वक अपने हाथी को पुनः आगे की ओर चलाया ।
भगदत्त के श्रङ्क ुश और पैर के अंगूठे का सकेत पाकर गजराज उस समय प्रयल कालीन अग्नि के समान भयानक हो उठा और सामने पढने वाले रथो व पदाति सैनिको को रोदना आरम्भ कर दिया । पाण्डव वीरो के वाणो को परवाह किए बिना हिसक मदोमन्त हाथी छोटे हाथियो को सवारो महित घोडों को उन पर श्रारूढ सैनिको सहित और पदाति सनिको को उसके शस्त्र-अस्ती नहित कुचलता व रौद्रता चला जा रहा था। एक दिन गजराज के इस भीषण प्रहार से कोलाहल मच गया । कही हाथियो के चीत्कार कही घोड़ो के प्रार्तनाद और कही सैनिको की हा हाकार सुनाई देती थी चारो थोर प्रन्नय का मा दृश्य प्रस्तुत हो गया ! की सेना में प्रातंक छा गया गया । यह देव घटोत्कच ने न रहा गया। उस ने उस खूनी हाथी का वध करने के लिए कुपित होकर एक चम चमाता हम्रा त्रिशूल चनाया | भगवन ने घटोत्कच के के त्रिशूल को देख कर समझ लिया कि उसकी मानसा कर
पाण्डवां