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जैन महाभारत
के राजा ने दुर्योधन के प्राणो की रक्षा के लिए तुरन्त ही अपने हाथी हकवा दिए और दुर्योधन का रथ हाथियो की ओट में आ गया। जिस से शक्ति का प्रहार हाथियो पर ही हुआ और वे धाराशायी हो गए ।
हाथियो के चिंघाड मारकर धाराशायी होते ही दुर्योधन की साथी सेना मे बडा कोलाहल मचा। हाथी तक भयभीत होकर बिगड उठे और पीछे की ओर भागने लगे। सैनिक सिर पर पर रख कर भागे। यह दशा देख दुर्योधन को बडा धक्का लगा, पर वह क्षमियोचित धर्म अनुसार वही स्थिर भाव से खडा रहा और कालाग्नि समान बाणो की बर्षा आरम्भ कर दी। परन्तु रण कौशल मे प्रवीण घटोत्कच ने सभी वार काट दिए और एक ऐसा - भैरव नाद किया कि बचे खुचे कौरव सैनिक भी थर्रा उठे। यह । देख कर भीष्म पितामह ने अन्य महारथियो को दुर्योधन की सहायता के लिए तत्काल ही भेज दिया। द्रोणा, सोमदत्त, बाहीक जयद्रथ, कृपाचार्य, भूरि श्रवा , गल्य,उज्जैन के राजकुमार, वृहद्वल, । अश्वस्थामा विकर्ण, चित्रसेन, विदिशाति और उनके पीछे चलने वाले कई सहस्त्र रथी, दुर्योधन की सहायता के लिए पहुंच गए। इतनी विशाल सेना के आने पर भी मैनाक पर्वत के समान स्थिर भाव से घटोत्कच खडा रहा। उसके साथ उसके सगी साथी विद्याघर थे। फिर तो दोनो पक्षो मे भीषण सग्राम होने लगा।