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सातवा दिन
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न जाने पाये"। इराव न की ललकार सुन कर मनिको ने उन्हे चारो ओर से घेर लिया और भीषण युद्ध करने लगे। जव कौरव पक्षी योद्धा पाण्डव पक्षी वीरो के द्वारा मारे जाने लगे तो सुबल के पुत्रों से न रहा गया और वे दौड़ कर उनकी सहायता के लिए पहुच गये। उन्हो ने जाते ही इरावान को चारो ओर से घेर लिया अकेला इरावान उन सभी का डटकर मुकाबला करने लगा, फिर क्या था कुपित तो दूर सुवल पुत्र इरावान पर टूट पडे और आगे पीछे, और दायें वार्य से इरावान पर बाणो की वर्षा होने लगी। परन्तु वह फिर भी किचित मात्र न घबराया। उसके शरीर पर अनेक जगह घाव या गए। लाल लाल लहू की धाराए वह निकली, किन्तु वह उसी प्रकार युद्ध कर रहा था, जसे कि स्वस्थ अवस्था मे करता था। बल्कि इस से उस को क्रोध चढ गया और उसने अपने तीखे बाणो से सभी को वीध डाला घायल हो कर वे मुछित हो गए। तब उसने चमकती तलवार हाथ मे सम्भाली और सुवल पुत्रो की हत्या करने के उद्देश्य से आगे बढा। परन्तु जब तक वह उनके पास पहुचता, उनकी मुर्छा भग हो गई। और कोध मे भर कर इरावान पर टूट पड़े। साथ ही उसे बन्दी बनाने का प्रयत्न करने लगे। परन्तु ज्यो ही वे निकट आये. इरावान ने तलवार के एसे हाथ दिखाये कि उनकी भुजाए कट गई और वे भुजाहीन हो कर पृथ्वी पर गिर पड़े। उन मे से केवल वृषभ नामक राजकुमार ही जीवित बचा।
__ इरावान का यह पराक्रम देख घबराया हुया दुर्योधन विद्याधर (रायस) अलम्बुष के पास गया और बोला-"महावली अर्जुन का पुत्र इरावान हमारी सेना का सहार कर रहा है, उसने सुवल पुत्रो का मार डाला है और यदि उसका वेग न रुका तो न जाने वह क्या कर गुजरे। तुम जानते ही हो कि भीमसेन ने तुम्हारे साथी विद्याधर वकासुर का वध किया था, उसका बदला लेने का उचित अवसर है। तुम तो बड़े बलवान और मायावी हो. चाहो तो भरावान का सहज ही मे वध कर सकते हो। कुछ ऐसा कगे कि
राचान धाराशायी हो जाये, ताकि सवल पूनो के वध का बदला गिल जाये और हमारी सेना का सहार रुक जाये । "
विनय भाव से की गई प्रार्थना को स्वीकार करके अलम्बुप