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* अठत्तीसवां परिच्छेद *
सातवां दिन RATEEKAR
। रात्रि भर दोनो पक्ष के वीरों ने विश्राम किया और पौ फटते हो दोनो ओर चहल पहल प्रारम्भ हो गई। रण की पोशाके पहन ली गई और विगुल बजते ही पाण्डव पक्ष की सेना छावनी से निकल कर तैयार हो गई। दूसरी ओर कौरव सेना भी अपने अपने उरा को छोडकर वाहर आ गई और सूर्य की किरणों का स्वरूणिम स्वय सफेदी मे वदलते ही दोनों ओर की सेनाए युद्ध भूमि की ओर चल पडी। उस समय महासागर की गम्भीर गर्जना की भाति महान कोलाहल होने लगा। चारो ओर विभिन्न प्रकार के अस्त्र शस्त्र चमक रहे थे।
दुर्योधन, चित्रसेन, विविंशति, भीष्म और द्रोणाचार्य ने अपनी समस्त सेना को एकत्रित करके सागर समान व्यूह का निर्माण किया। सागर व्यूह की तरग मालाएं हाथो, घोड़े आदि वाह्न थे। समस्त सेना के आगे भीष्म जो थे उनके साथ मालवा, दक्षिण भारत तथा उज्जैन के योद्धा थे। इसके पीछे कूलिन्द, पारद, क्षुद्रक तथा दानाचार्य थे। द्रोण के पीछे मगध और कलिग प्रादि देशो के योद्धा पजिनका नेतत्व राजा भगदत्त के हाथ में था। इनके बाद राजा बृहद्वल था जिसके साथ मेकल तथा करुविन्द आदि देशो के योद्धा
। वृहदल के पीछे था भिगतराज सुशर्मा, और उसके पीछे पावस्थामा और सबसे पीछे दर्योधन अपने भाईयो सोहत था। चारों और प्रग रक्षक की भाति सैनिक थे। और निको तथा