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जैन महाभारत
कर दिया तक कि सात्यकि दूसरा धनुष उठाए, अलम्बुष ने अनेक भी भाण मार कर उसे भी घायल कर दिया। उस अवसर पर, जब कि । सात्यकि के शरीर से अनेक स्थानों पर रक्त धारा बह रही थी, उसका बडा ही विचित्र पराक्रम देखने को मिला । तीखे तीखे बाणों की चोट खाने पर भी सात्यकि के मुख पर घबराहट का कोई चिन्ह न था, इसके विपरीत उसने शीघ्र हा एक दूसरा धनुष सम्भाला। अलम्बुष ने उस समय राक्षसी माया प्रयोग करके तीक्ष्ण तथा अतिसहारक बाणी की झडी लगा दी थी परन्तु बाणो से चोट पर चोट खाते हुए भी सात्यकि ने अर्जुन से मिला ऐन्द्रास्त्र चढाया और अपनी सश्पूर्ण शक्ति से उसे मारा। फिर क्या था अस्त्र के प्रभाव से समस्त राक्षसी माया भस्म हो गई । और तत्काल ही वाणी की वर्षा इतने वेग से की कि अलम्बुष का साहस टूट गया
और उसे ऐसा हुआ कि कुछ देरि इसी प्रकार महा पराक्रमी सात्यकि बाण बरसाता रहा तो वह मारा जायेगा। यह सोचकर उसने रण भूमि से भाग जाने में ही अपना कल्याण समझा और देखते ही देखते सायाक का सामना करना छोडकर बड़े वेग से रण भूमि से भाग खडा हा । अलम्बुष के हटते ही सात्यकि ने दुर्योधन के भाईयो' पर आक्रमण किया और एक अस्त्र प्रयोग करके उनके धनुष तोड डाले, बेचारे कौरव भ्राता कुछ भी न कर पाये और रण भूमि से भाग जाना ही उन्होने श्रेयस्कर समझा ।
विकट गाडिया एक दूसरे पर गोले बरसा रही थी, बडी भयकर आवाज हो रही थी कि दिल दहल जाता था और इधर द्रुपद के पुत्र महाबली धृष्ट घुम्न ने अपने तीक्ष्ण बाणो से दुर्योधन को ढक दिया था। वाणो की छाया मे रहकर भी दुर्योधन भयभीत न हुआ और किसी प्रकार रथ को इधर उधर घुमा फिराकर कुछ ऐसा अवसर प्राप्त कर लिया कि वह स्वय भी बाण चला सके । तडातड़ ९० बाण क्षण भर मे ही मारे जिनसे धृष्ट द्युम्न का कवच कई स्थानों पर कट गया फिर क्या था धष्ट धम्न ने कुपित होकर दुर्योधन के सारथि और घोडो तक को मार डाला। कदाचित फिर दुर्योधन के मरने का ही नम्बर आता, परन्तु वह दौडकर शकुनि के रथ पर जा चढा और इस प्रकार धष्ट धम्न के हाथो से बच नकला।