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जैन महाभारत
भयानक युद्ध छिड गया। सात्यकि भला द्रोणाचार्य के सामने कब तक टिकता। सात्यकि की बुरी गत होते देख भीमसेन उस की सहायता को दौड़ आया और द्रोणाचार्य पर पाते ही भयकर बाण वर्षा आरम्भ करदी।
इस पर युद्ध और जोर पकड़ गया। द्रोण, भीष्म और शल्य तीनों भीमसेन के मुकाबले पर आगए। यह देख शिंखडी ने भीष्म तथा द्रोण दोनो पर तीक्ष्ण बाणो की वर्षा प्रारम्भ कर दी शिखडी के मैदान मे आते ही भीष्म रण भूमि छोड़ कर चले गए। क्योकि उनका कहना था कि शिखण्डी जन्म से ही पुरुष न होकर स्त्री है इस लिए उसके साथ लडना क्षात्र-धर्म के विरुद्ध है।
जब भीष्म भी मैदान छोड गए तो द्रोणाचार्य ने शिखंडी पर आक्रमण कर दिया। महारथी होते हए भी शिखंडी द्रोणा चार्य के सामने अधिक देर न टिक सका।
दोपहर तक भीषण सकूल युद्ध होता रहा। दोनों ओर के सैनिक आपस में गुत्थम-गुत्था होकर लड़ने लगे। दोनों ओर से असख्य वीर इस युद्ध की बलि चढ़ गए।
तीसरे पहर दुर्योधन ने सात्यकि के विरुद्ध एक भारी सेना भेज दी। पर सात्यकि ने उस सेना का सर्वनाश कर दिया और भूरिश्रवा को खोज कर जा कर उस से भिड गया। परन्तु भूरिश्रवा भी कोई कम वीर न था. वह भी डटा रहा और अन्त मे सात्यकि के सभी साथी थक कर अलग हो गए। अकेला सात्यकि डटा रहा। यह देख कर सात्यकि के दसों पुत्र भूरिश्रवा पर टूट पड़े ।
परन्तु भूरिश्रवा तनिक भी विचलित नही हुआ। उन की एक साथ की गई बाण वर्षा से वह अपनी रक्षा करता रहा और अन्त मे अपने बाणों से उन सभी के धनुष तोड़ डाले और अचानक ही एक ऐसा भयकर अस्त्र प्रहार किया कि दसो कुमार मारे गए। वे दसों भूमि पर ऐसे गिरे जैसे वन गिरने पर पेड़ धाराशायी हो जाते हैं। अपने दसो पुत्रो को इस प्रकार मृत देख सात्यकि मारे गोक व क्रोध के प्रापे से बाहर हो गया और भूरिश्रवा पर टूट पडा, दोनों के रथ आपस मे टकराकर चर हो गए। तब दोनो ढाल तलवार लेकर भूमि पर लडने लगे। इतने मे भीमसेन तेजी से रथ लेकर आया और सात्यकि को बलपूर्वक रथ मे बैठाकर रण भूमि