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________________ युद्ध होने लगा ३७३ तडित का सा भयकर शब्द कर रही थी। दोनो ओर के सैनिक एक दूसरे को अपनी पूर्ण शक्ति लगाकर पछाडने का असफल प्रयत्न कर रहे थे। उधर शान्तनु नन्दन भीष्म अपना काल डण्ड समान धनुष लेकर अर्जुन की ओर झपटे। उस समय श्री कृष्ण ने भीष्म पितामह के रथ की ओर अर्जुन का रथ हाकते हुए अर्जुन को सम्बोधित करके कहा-"पार्थ ! देखो पितामह सबसे पहले तुम पर ही बल प्रदर्शन करना चाहते हैं। इस समय दादा और पौत्र नही, दो शत्रु सेनाप्रो के मुख्य योद्धाओ का सग्राम होना है। लो अपना रण कौशल अब दिखाओ।" वीर अर्जुन ने सम्भल कर अपना गाण्डीव उठाया और ज्यो ही भीष्म की ओर से उनके धनुष की पहली टकार हुई तेजस्वी अर्जुन ने अपने जगत विख्यात गाण्डीव की हृदय भेदी टकार की और भीष्म जी पर टूट पडे । वे दोनो कुरुवीर एक दूसरे का वीरता से उत्तर देने लगे। भीष्म ने अर्जुन को वीध डाला। उनके वाण ठोक निश ने पर जाते, वीर अर्जुन प्रहार से बचने का प्रयत्न करते और अपने बाण से भीष्म जो भो अपने बचाव की चिन्ता मे डाल देते। परन्तु न तो भीष्म और न अजून ही सन्नाम में एक दूसरे को विचलित कर सके। दूसरी ओर का हाल भी देखिये सात्यकि ने कृतवर्मा पर आक्रमण कर दिया है वे दो सिंह आपस मे जूझ रहे है। उन्हे किसी की चिन्ता नही, रण भूमि मे क्या हो रहा है। भीषण और गेमाचकारी युद्ध मे वे एक दूसरे को परास्त करने के लिए पूरी शक्ति लगा रहे है। और इधर महान धनुर्धर कोसल राज वृहदल से छोटा, सभ' पाद्धात्रा में कम पायुका, एक प्रकार से बालक, चचल वाल योद्धा आभमन्यु भिडा हुआ है। उन दोनो के भीषण युद्ध मे एक बार कोमल राज का दाव चल गया तो उसने अभिमन्यु के रथ की ध्वजा फा काट गिराया और उस के सारथी को भी मार गिराया। फिर या था अभिमन्यु सिंह की भाति विफर उठा। उस ने क्रुद्ध होकर ५ .
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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