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जैन महाभारत
"पाप सेना को आगे तो बढाईये। हाथ कागन को आरसी क्या। अभी ही पता चल जाता है।'-दुर्योधन ने कहा।
भीष्म पितामह के नेतृत्व मे दुर्योधन, अपने भाईयो और सैनिको सहित आगे बढा। दुन्दुभिया का विपुल नाद हुआ। तो । दूसरी ओर से पाण्डवो की सेना भी भीमसेन के नेतृत्व मे रण भेरी वजाती हुई पागे बढ़ी। पान्डवो मे उत्साह था. कुछ कर गुजरने की अकाक्षा थी।
फिर दोनो सेनायो मे भयकर युद्ध होने लगा। द्वन्द्व युद्ध तथा “साकल युद्ध" दोनो ही होने लगे। सांकल युद्ध से अभिप्राय उस युद्ध से है जो हजारो सैनिको के एक साथ दूसरे पक्ष के हजारों सैनिको पर टूट पड़ने से होता है। दोनो ओर से ऐसा भीषण शब्द हो रहा था कि सुनकर रोगटे खड़े हो जाते थे। उस समय महाबाहु भीमसेन सांड की भाति गरज रहा था। उसकी गर्जना से कौरव सेना का हृदय दहल जाता था। जैसे सिंह की दहाड सुन कर जगल के कुछ जानवरो का मलमूत्र निकल पड़ता है. इसी प्रकार की गर्जना से कौरव सेना के कुछ सैनिको का मूत्र ही निकल गया और भीमसेन की भयानक चिघाड को सुनकर कभी हाथी घोडा तर्क काप उठते । भीमसेन विकट रूप धारण करके वज्र की भांति कौरव सेना पर टूट पडा। जिसमे कौरवो की सेना मे खलबली मच गई। दुर्योधन ने जब यह देखा तो अपनी सेना का साहस बढाने के लिए अपने भाईयो को सकेत किया और भीमसेन पर मेघ वर्षा की भाँति वाण वर्षा होने लगी यहा तक कि वाणो की वर्ग में भीममेन उमो प्रकार छप गया जैसे मेघ खण्डो मे रवि छुप जाता है उस समय दुर्योधन, दुर्मुख, दु सह, शल्य, दुःशासन. दुर्मर्पण, विविंशति. चित्रसेन, विकर्ण पुरुमित्र जय, भोज और सोमदत्त फा आत्मज भूरि श्रवा, यह सभी अपने बड़े वडे धनुषो पर तेज वाण चढाकर विपधर सर्पो के समान बाण चला रहे थे। और दूसरा योर से सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु, नकुल, सहदेव और धृष्टद्युम्न अपने वाणो से कौरवो की बाण वर्षा का उसी वीरता से उत्तर रहे थे। उस समय प्रत्यन्चाओ की भीषण टकार आकाश मे तडपता