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कृष्ण शाति दूत बने
• तक उनका कार्य सफल न हो जाय तब तक भोजन न करे। जिस
उद्धेश्य को ले कर मैं यहा आया हू वह पूरा हो जाय तब मुझे भोजन का निमत्रण दीजिए।"
- दुर्योधन और उसके भाइयो ने बहुत हठ किया परन्तु वे न माने और तुरन्त विदुर जी के निवास स्थान की ओर चल पड़े। जहा जा-कर उन्हें कुन्ती, माता मिली। श्री कृष्ण को देखते ही माता कुन्ती को अपने पाचो पुत्रो की याद आ गई। उन से न रहा गया और जी भर आया। आखो से प्रासू उमड पडे । श्री कृष्ण ने पाण्डवों की कुशलता का समाचार सूना कर और प्रत्येक ढग से धैर्य बैंधा कर कुन्ती को मान्त्वना दी। "
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श्री कृष्ण ने बिदुर जो के यहा ही भोजन किया और फिर उनसे सन्धि के सम्बन्ध में वार्ता की। विदुर जी तो सन्धि के पक्ष मे थे ही, उन्होंने सन्धि के लिए दुर्योधन की डकार की रहस्य बताते हुए कहा कि दुर्योधन मदाध हो गया है। उस के मित्रो ने उमे चढा रक्वा है। इस लिए मन्धि वार्ता की सफलता में मन्देह है। फिर भी यदि युद्ध हुंग्रा तो विजय पाण्डवो की हो होगी।
____ x . - x 7 . xx. : __कौरव दरबार लगा था। श्री कृष्ण जी पहुंचे, उन का प्रांदर सत्कार करने के पश्चात उन्हे उचित आसन दिया गया। श्री कृष्ण ने अपने प्रागमन'का कारण बताया और धर्म तथा नीति 'सम्बन्धी बातें बता कर सन्धि करने के लिए जोर डाला। उन्हो ने एक एक करके पाण्डवो पर किए गए दुर्योधन के 'अत्याचार गिनाए जिन्हे सुन कर दुर्योधन ऋद्ध हो गया और आवेश मे आकर बाला--'आप सन्धि की वार्ता करने नही मुझे अपमानित करने के लिए - प्राये हैं। और मै अपमान सहन करने का आदी नहीं है। यदि आप मुझे आतताई और अन्यायी ही समझते है तो जाइये मुझे
पकी कोई बात स्वीकार नही। रण क्षेत्र मे ही हमारा और पाण्डवो का फैसला होगा।":-: . : : ... ... .