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$$$$$$$医医安安。 - जरासिंध-वध SINESS
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पवन द्वीप से कुछ जौहरी व्यापारी जरासिन्ध के महल । में गए और अपने बहु मूल्य रत्नो को बेचने लगे । जीवयशा ने
उन के पास जितने बहु मूल्य रत्न थे, सभी देखे । एक रत्न, जो सभी मे मूल्यवान था, जीवयशा के मन भा गया, उसने मल्य पूछा व्यापारियो ने मन चाहा मल्य बता दिया । जीवयशा ने भी अपनी इच्छानुसार दाम लगा दिया। जीवयगा द्वारा वोले गए दामो को सुनकर व्योपारीयो ने पश्चाताप करते हुए कहा- "हम तो यहां इसी लिए आये थे कि आप के महल मे अधिक दाम उठ सकेगे । पर क्षमा करना, अब हम द्वारिका से यहा पा कर पछता रहे हैं । इससे अधिक मूल्य तो इस रत्न का वही मिलता था ।"
द्वारिका का नाम उस ने जीवन में प्रथम बार ही सुना था, पूछ बैठी-"द्वारिका नगरी कौनसी ?"
व्यापारी ने हंसते हुए कहा-"नाप तो ऐसे पूछ रही हैं मानों कभी द्वारिका नाम ही न सुना हो। भला जम्बू क्षेत्र के किस व्यक्ति ने द्वारिका का नाम न सुना होगा ।"
जीवयमा ने अपनी अनभिज्ञता प्रकट की, तो व्यापारी ने द्वारिका की पूरी पूरी प्रगंसा करते हुए द्वारिका का परिचय दिया । वह बोला-"श्री कृष्ण महाराज की राजधानी द्वारिका पृथ्वी पर स्वर्ग के समान है। इतनी मुन्दर नगरी जम्बू द्वीप में पादाचिन हो कोई हो । ऐसा लगता है मानो देवतानो ने ही उसे बसाया हो ।