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परामर्श .
रने का उनका प्रयास मुझे तनिक भी अच्छा नहीं लगा। हर किसी त का सुन्दरता से समर्थन किया जा सकता है और शब्द जाल के
रो अन्याय को न्याय सिद्ध करने की चेष्टा भी की जा सकती है। कन्तु जो स्पेष्ट अन्याय है वह कदापि न्याय नहीं हो सकता, न अधर्म धर्म ही हो सकता है। बलराम जी की बातो का मैं जोरो से विरोध करता ह। क्यो कि यह ठीक है कि धर्म राज जुआ खेलना नहीं जानते थे और शकुनि इस क्रिया मे पारंगत था। किन्तु इनकी उस मे श्रद्धा नही थी। ऐसी स्थिति में यदि उस ने इन्हे जुए के लिए निमन्त्रित कर के, जब कि यह उस निमन्त्रण को राजायो की रीति के अनुसार अस्वीकार नहीं कर सकते थे, इन की सम्पत्ति को जीत लिया तो वह धर्मानुकल जीत नही हो जाती। अजी | कौरवो ने तो इन्हे जुए के लिए कपट पूर्वक बुलाया था, फिर उनका यह कार्य न्यायोचित कैसे हो सकता है ? कौन नहीं जानता कि खेल मे बारम्बार महाराज युधिष्ठिर को ललकारा
या। और खेल मे हारने के पश्चात दुर्योधन ने राज्य वापिस करने के लिए एक शर्त रक्खी। वह शर्त धर्मगज ने पूर्ण करदी। अब दुर्योधन की ओर से चीख पुकार हो रही है कि अर्जुन १३३ वर्ष की अवधि पूर्ण होने से पहले ही प्रकट हो गया। उन की यह बात सरासर झूठ है। बात यह है कि दुष्ट दूर्योधन वास्तव मे हर प्रकार से अन्याय पर अडा हा है। वह नीच बिना बल प्रयोग के मानेगा ही नहीं। एक नही हजार दूत भेजिए वह दुरात्मा तो तभी मानेगा जब वह और उस के भाई युद्ध में मेरे तोरो के सामने अपने को मृत्यु का ग्रास होते पायेगे। मै युद्ध मे अपने चाणो से उस नीच को वाध्य कर दुगा कि वह धर्म राज के चरणो मे सिर रख कर अपने अन्यायो के लिए क्षमा याचना करे और यदि ऐसा नही होता तो उसे, उसके मन्त्रियो सहित यमपुरी पहुचा दूगा । उस दुष्ट को शात्ति की वार्ता से अकल नही पायेगी, उसकी बुद्धि तो युद्ध मे ही ठिकाने आयेगी। भला ऐसा कौन है जो मग्राम भूमि मे गाण्डीव धारी अर्जन, चक्रपाणि श्री कृष्ण, दुर्धर्ष भीम, धनुर्धर नकुल, सहदेव, वीरवर विराट, द्रपद तथा उन के पुत्रों, अभिमन्यु आदि पराक्रमी वीरो का वेग महन कर सके। मैं अकेल ही अपने बाणों मे कौरवो के होश ठिकाने लगा दूगा। धर्म राज