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________________ २७२ जैन महाभारत की मत्रणा होनी थी। श्री कृष्ण ने अपना वक्तव्य समाप्त करके बलराम की ओर देखा । तब बलराम उठे और बोले-"कृष्ण ने जो मत व्यक्त किया वह मुझे न्यायोचित लगता है और राजनीति के अनुकूल भी श्री कृष्ण ने जो मत व्यक्त किया वह जैसा धर्मराज के लिए हितकर है, वैसा ही कुरूराज दुर्योधन के लिए भो है। वीर कुन्ती पुत्र प्राधा राज्य कौरवो के लिए मांगते हैं। अत. यदि दुर्योधन इन्हे आधा राज्य दे दे तो वह बडी आनन्द से रह सकता है। विना किसी युद्ध के , सन्धि से, शान्ति पूर्ण ढग से ही यह समस्या सुलझ जाये तो उससे न केवल पाण्डवो की ही बल्कि दुर्योधन और उसकी सारी प्रजा की भी भलाई होगी। सब सूख चैन से रह सकग और व्यर्थ का रक्तपात भी बच जाएगा। क्योकि मैं इस बात का मानने वाला हूं कि अहिंसा के सिद्धान्त से जो मिलता है, कल्याण उसी से होता है। यदि केवल एक राज्य के लिए निरपराधी मनुष्यों का रक्त बहे तो यह हम सभी के लिये बडे कलक की बात होगी। अत. इसके लिए यह प्रावश्यक है कि महाराज युधिष्ठिर की ओर से कोई नीतिवान दत जाये और वह यधिष्ठिर का विचार वहाँ जाकर सुनाये तथा महाराज दुर्योधन का विचार सुने । वहा जो दूतजाए उसे. जिस समय सभा मे भीम, धृतराष्ट्र, द्रोण, अश्वस्थामा विदुर, कृपाचार्य शकुनि कर्ण तथा शास्त्र प्रार शास्त्रो मे पारगत दूसरे धतराष्ट्र पुत्र उपस्थित हो और जब सव वयोवृद्ध तथा विद्या वृद्ध पुरवासी भी वहाँ आ जाए, तब उन्ह प्रणाम करके वे बातें कहनो चाहिए जिन से महाराज युधिष्ठिर के पक्ष का प्रतिपादन हो और दुर्योधन को अपने कर्तव्य का ज्ञान हो। किसी भी अवस्था में कौरवो को कुपित नही करना चाहिये। उस बड़ी नम्रता से अपनी बात कहनी होगी और चाहे कैसा भी उत्तेजना का अवसर प्राये पर वह क्रोध मे न आये। ज़रा झुकने से जो काम आसानी से निकल आता है वह तनने से कठिनाई से ही निकलता है। हमें यह याद रखना चाहिए कि दुर्योधन ने सबल होकर ही इन का राज्य छीना था। युधिष्ठिर की जुए मे आसक्ति थी, यह धम विरुद्ध लत के शिकार थे। जिन भाषित धर्म के प्रतिकूल चल कर इन्हो ने जुग्रा खेला था, फिर यदि शकुनि ने इन्हे जुए मे हरा दिया
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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