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________________ जन महाभारत आभारी हं। राज्य तो आप ही रखिये। आप ने पाडे समय पर हमें जो आश्रय दिया, वही लाखो राज्यो के बरावर है।" विराट ने कुछ सोचने के बाद अर्जुन से आग्रह किया कि आप राजकन्या उत्तरा से विवाह करले । अर्जुन ने उत्तर दिया--"राजन् ! आप का बड़ा अनुग्रह है। परन्तु मैं आप की कन्या को नाच तथा गाना सिखाता रहा हू अतः वह तो मेरे लिए बेटी के समान है। अतएव मेरे लिए यह उचित नही कि अपनी शिष्या के साथ विवाह करू।" लेकिन मैं तो चाहता हु कि अपनी कन्या का विव आप ही। के परिवार मे सम्पन्न करके एक भार से मुक्त हो जाऊ, आप के परिवार से एक सशक्त सम्बन्ध स्थापित करके धन्य हो जाऊ और आपको सेवा करके अपने को कृत्य कृय करल "राजा विराट ने विनीत भाव से कहा। अर्जुन कुछ देरी के लिए विचार विमग्न हो गया और अन्त मे कहा--"यदि आप की यही इच्छा है तो आप अपनी कन्या को मेरे पुत्र अभिमन्यु की सहर्धामणी बना सकते हैं। इस सम्बन्ध को मैं सहर्ष स्वीकार कर लूगा।" __राजा विराट ने अर्जुन का प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लिया और इस के लिए हार्दिक आभार प्रगट किया। अभी यह बातें हो ही रही थी कि एक चोवदार ने प्रवेश किया राजा तथा पाण्डवो का अभिवादन कर के उसने कहा-'महाराज ' हस्तिना पुर नरेश दुर्योधन की ओर से एक दूत कोई विशेष सन्देश लेकर आया है। और महाराज युधिष्ठिर से मिलना चाहता है।" ___ "उसे सादर व ससम्मान यहा ले आयो " युधिष्ठिर न । आज्ञा दी। दूत ने आकर राजा विराट तथा पाण्डवों को प्रणाम किया। युधिष्ठिर ने पूछा--"काहये, आप कहा से पधारे ?" "मुझे महाराज दुर्योधन ने एक सन्देश लेकर भेजा है।'उसने कहा।
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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