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* द्वितीय परिच्छेद *
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. हिडिम्बा विवाह
इन्द्रप्रस्थ के निवासी कौमुदी महोत्सव मनाने मे तन्मय थे। नाना प्रकार के नाटको नृत्यो हास परिहास मे दिवस कव गया रात्रि कव आई का भान भूले हुए थे। जिधर देखो रंग रेलियो का सागर ठाठे मार रहा था । पाचो पांडव भी वन यात्रा से विरत नही थे। वे भी शरीर रक्षकों के साथ पर्वत के एक शिखर से दूसरे शिखर पर, एक बन प्रदेश से दूसरे वन प्रदेश मे प्रकति की मनोरम छटा को निहारते हुए मन्द मन्द सुगन्ध लिये हुए समीर से अठखेलियाँ करते हुए अपने उन्मुक्त हास से वन प्रदेश को मुखरित करते हुए विचरण कर रहे थे । उन्होंने एक दिन वन के गहन प्रदेश में प्रवेश करने की ठानी। अग रक्षको को खेमे पर ही नियुक्त कर बवर केशरी सम निर्भीक झूमते झामते सारे दिन अमोद प्रमोद मे चलते हुए साय काल के समय एक ऐसे बन प्रदेग में पहुंचे जहा प्रत्येक ऋतुयो के सफल वृक्षो की पंक्तियो के मध्य में एक निर्मल सरोवर कमलो की सुगन्ध बसेर रहा था। क्योकि पाडव इस समय श्रान्त हो चुके थे। रात्रि सिर थी । अत. वहीं विश्राम लेने की ठानी। रचि अनुसार सरस स्वादुफलो का प्रावादन किया। पौर सरोवर तीर स्थान पर निर्मित पृथ्वीगिला फलको पर मनो विनोद करते हए दूँग्धती शशिकिरणो मे स्नान करते हए भीम के अतिरिक्तचारो पाण्डव सोगए भीम सेन जागता रहा । जहा वे लोग थे, उसी के निकट एक प्रवल विद्याधर रहता था जिनका नाम धा