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कौरवो के वस्त्र हरण
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स्थामा.! अर्जुन तो अर्जुन उसके साथ तुम जैसे उसके प्रशसक भी पा जाये तो कर्ण उनका डट कर मुकाबला करने वाला है।, चौपड के खेल की बात - उठाकर पाण्डवो की मूर्खता के प्रति सहानुभूति दर्शाने वाले योद्धा | राजा दुर्योधन की सेना मे खडे होकर शत्रु का पक्ष लेते हुए तुम्हे लज्जा नही आती।"
"लज्जा तो उसे पाये जो दुर्योधन की चापलूसो करते हुए न्याय अन्याय मे भेद करना ही भूल गए। अथवा लम्बी चौडी. डोगे हाक कर युद्ध जोतने का स्वप्न देखे। मुझे लजा क्यो आने लगो है ?"..-अश्वस्थामा ने क्रुद्ध होकर कहा ।।
दुर्योधन को अश्वस्थामा को खरी खरी बातो ने विचलित कर दिया। क्रोध के मारे कांपते हए उसने कहा - "अश्वस्थामा ! - प्राचार्य जी के कारण मैं तुम्हारी बातें सहन कर रहा है। वरना
अभी ही इस मूर्खता का मज़ा चखा देता। तुम यह भी भूल गए
कि अपनी बातो से किसे अपमानित कर रहे हो। स्मरण रक्खो कि ___ मैं अपमानित होने के लिए कभी तैयार नही है। जिस समय
हस्तिना पर राज्य के धन से तुम आनन्द लूटते हो उस समय तुम्हे यह क्यो नही याद आता कि यह वही धन है जो उसी दुर्योधन की सम्पत्ति है जिस ने पाण्डवो को जुए में हराया है। ऐसे लज्जाशील हो तो पाण्डवो के साथ जाकर भीख मागते क्यों नहीं घूमते ?" - - : 'जिनके बल पर तुम अकडते हो, उनके लिए ऐसी बाते मुह से निकालते समय यह मत भूलो कि तुम सौभाग्य शाली हो कि 'आचार्यो के शुभ कर्मों के प्रताप से तुम्हारा पाप का घड़ा अभी तक हतिर रहा है।"-अश्वस्थामा ने विगड कर कहा ।... ...
"देखते हो, प्राचार्य जी। अश्वस्थामा का दिमाग कितना बिगड़ गया है ?"-दुर्योधन ने कृपाप्राचार्य की ओर देखकर कहा । दर कौरव वीरो को इस प्रकार आपस मे झगडते और परिसिस्थिति चिन्ता जनक होते देख भीष्म पितामह बडे खिन्न हुए। के हस्तक्षेप करते हुए बोले-बुद्धि मान व्यक्ति कभी अपने आचार्य का अपमान नही करते। योद्धा को.चाहिए कि देश तथा कालको