________________
२३०
जैन महाभारत
.
• किया। उसकी चोटी नागिन सी फहगने लगी। माडी अस : ध्यस्त होकर हवा में उड़ने लगी। आगे प्रागे उत्तर पीछे पोहे बृहन्नला। उत्तर बृहन्नला की पकड़ मे नही आ रहा था और रोता हुआ इधर उधर भाग रहा था। सामने कौरव सेना के वीर _आश्चर्य चकित हो यह दृश्य देख रहे थे। उन्हे हंसी भी पा रही
थी। -: प्राचार्य द्रोणा के मन में कुछ शका जागृत हुई। सोचने लगे- "कौन हो सकता है यह ? वेष भूषा तो स्त्रियों सी.: पर चाल ढाल पुरुषो के समान प्रतीत होती है। ..." . पर नपुसक सा व्यक्ति रण स्थल में क्यों आया "........... .- .
दूसरे वीर भी कुछ ऐसी ही बातें सोच रहे थे। प्रकट रूप मे आचार्य द्रोण बोले-"इसका भागना तो प्रकट करता है. कि यह कोई बलिष्ट व्यक्ति है। आगे वाली व्यक्ति रोता हुआ भाग रहा है और पीछे वाला उसे पकडने दौड़ रहा है। आखिर चूह विल्लो की दौड़ इन मे आपस मे क्यों हुई ?. कही स्त्री वेप में कोई-योद्धा नो-नही ? और कही अर्जुन ही हो तो .... ?..
"अर्जुन नहीं हो सकता-कर्ण ने कहा-और अगर हुआ भी तो क्या ? अकेला ही तो है। दूसरे भाईयो के बिना अर्जुन हमारा कुछ नही दिगाड सकता। पर इतनी दूर की क्यो सोचे ?"
"तो फिर यह नपुसक रूपधारी, कौन हो. सकता है ?" -द्रोणाचार्य ने प्रश्न उठाया।
"चात यह है कि राजा विराट अनी समस्त सेना लेकर सुगर्मा के मुकाबले पर गया मालूम होता है। नगर में अकेला राजकुमार ही होगा। कोई कुशल मारथी मिला न होगा तो रनिवास में मेवा टहल करने वाले हीजडे को मारथी बना लिया और हम मे लडने चला पाया है।"-कर्ण ने उत्तर दिया।
- इधर यह बाते हो रही थी उधर बृहन्नला गजकुमार उत्तर को पकड़ने का प्रयत्न कर रही था। ..जो तोड कर इभर पर