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कीचक वध
हम यह किसी प्रकार सहन नहीं कर सकते कि कीचक का वध करा कर यह पापिन जीवित रह कर हृदय जलाती रहे। इसे भी कीचक के साथ ही जलना होगा।"
ठीक है, ठीक है। इसे भी कीचक के शव के साथ ही जला दो।" समस्त उपकीचकों ने कहा ।
राजा विराट कीचक के वध से बड़े दुखित थे क्योकि अब वे अपने को निस्सहाय समझने लगे। कीचक से वे जहा भयभीत रहते थे, वही उसके सहारे वे निश्चिन्त थे। उन्हे अपने बेरियो का कोई भी भय नही रहा था। परन्तु कीचक के वध से उन के सामने पुन. वैरियो का भय उपस्थित हो गया था। और साथ ही वे उस गधर्व से बहत ही भयभीत थे जिसने कीचक को मार डाला था। वे सोचते थे कि सौरन्ध्रो के कारण प्राज तो कोचक जैसा वलवान सेनापति मारा गया, कल को कही कुछ और न हो
जाय ।
इस लिए जब उपकोचकों ने सोरन्ध्री को कीचक के शव के साथ ही जला डालने का निश्चय किया तो उन्हों ने कोई विरोध न किया। यद्यपि उसी समय उन्हे यह भी ध्यान पाया कि सीरन्नो के जला डालने पर यदि गधों ने मत्स्य देश को ही तहम नहस कर डालने की ठान ली तो क्या होगा? पर उसी समय उन्हें यह भी ध्यान आया कि यदि उपकीचको के बाड़े पाये और वे कष्ट हो गए तो क्या होगा। बस इन प्रश्नो से विराट वडे असमजम मे पड गए। चक्कर में पड़े विराट को कुछ न सुझा कि क्या करे। वस
चे चिन्तित रहे।
उधर उपकीयको ने कीचक की अर्थी के साथ सोरन्त्री को याध लिया। और इमशान भमि की ओर चल पड़े। पाचान देश की राजकुमारी और परम तेजस्वी धनुर्धारी अर्जुन की जोवन मगिनी द्रौपदी, मोरन्धी के वेप में उस समय उपकीचगो के चगुल में फस कर अवला की भाति विलाप कर रही थी। उसने बरुण चन्दन करते हुए कहा-"कहा है मेरे सिरताज ! बहां है मेरे