________________
कीचक बध ..
...
., १७७ ..
भी तुम्हारे रूप पर मुझ जैसा शूरवीर पासक्त हो रहा है। वह शूरवीर जिसके शौर्य से मत्सय नरेश तक कापता है, जिसकी उगली के इशारे पर सारा मत्सय देश नाचता है। जिसके असोम बल के सामने विश्व के सभी योद्धा सिर झुकाते है। . ऐसे वीर की पटरीनी बनने का अवसर तुम्हें मिला है, इसे मथ से जाने देना बुद्धिमानी नहीं है ।"
कीचक को इस सीख का भी सोरन्ध्री रूपी द्रौपदी पर कोई प्रभाव न पडा, उसने दात पीसते हुए कहा-निर्लज्ज! अपने इसी पीरूप पर इतराता है जो एक स्त्री के रूप के सामने नतमस्तक हो गया । एक सती की लाज का सौदा करने का साहस करता है। मुझे ज्ञात नही था कि विराट नरेश के राज प्रासाद मे ऐसे नीच लोग भी रहते हैं. जिन्हे लज्जा, सभ्यता, धर्म और बुद्धि छू तक नही गई। में अपने सतीत्व के सामने सारे ससार की वीरता, उच्च से उच्च पद और स्वर्ग के वैभव तक को ठुकरा सकती हू। याद रख कि मुझ जैसी पतिव्रता के सामने तेरे सारे प्रलोभन और भय व्यर्थ सिद्ध होंगे। खबरदार ! जो भविष्य मे कभी इस प्रकार का विचार भी तेरे मस्तिष्क मे उभरा । ..... " _"प्रो दासी ! कीचक के नम्र निवेदन को ठुकराने का परिणाम क्या होगा? जानती है ?"-कीचक ने क्रोध से जलते हुए कहा।
___ "जानती हूं। तेरा क्रोध उबल पडेगा और तु स्वयंमेव अपनी मृत्यु को आमन्त्रित करने से न चूकेगा. ?". --सौरन्ध्री बोली ।
' अपमानित कीचक सौरन्नी के उत्तर से तिल मिला उठा।. उस ने सौरन्ध्री की ओर हाथ वढाया, पर वह विद्युत गति से वहा में हट गई। क्रोधाग्नि में जलता कीचक देखता ही रह गया।
शास्त्रो मे ठीक ही कहा है कि वासना लिप्सा में फसे वीर भी फायर हो जाते हैं, उनकी वृद्धि पर वामना परदा डाल देती है चोर