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कीचक वध
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पर तुम हो कि मै जितना तुम्हारे निकट पाने का प्रयत्न करता ह, उतनी ही तुम मुझ से दूर रहने के लिए प्रयत्नशील रहती हो। आखिर इतनी घृणा का क्या कारण है ?"
"आप को किसी पर-नारी से ऐसी बाते करते लज्जा नही आती?".- सौरन्ध्री ने अपने मनोभावो को छुपाने का प्रयत्न किया और कीचक की बातों से उस के हृदय मे उस के प्रति जो, घृणा एव क्रोध का तूफान उठा था, उसे रोके रहने का असफल प्रयत्न किया, पर जैसे किसी कटोरे मे मात्रा से अधिक पानी भर देने से पानी छलक पड़ता है, उसी प्रकार सौरन्ध्री का क्रोध भी छलक पडा। । तुम लज्जा की बात कहती हो, पर मेरे हृदय की दशा को नहीं जानती? तुम्हे पता नहीं कि मैं तुम्हारे लिए किस प्रकार तडप रहा हूँ। तुम्हारा सौभाग्य है कि मुझ जैसे सर्व शक्ति सम्पन्न सेना पति ने अपना मन तुम जैसी दासी पर वार दिया है। पर वास्तव मे तुम्हारे रूप ने मुझे घायल कर दिया है। और तुम्ही मुझे लज्जा का पाठ पढाती हो। सौरन्ध्री ! मेरे हृदय से इतना अन्याय पूर्ण खेल मत करो।"- कीचक ने बहुत ही प्रेम पूर्ण स्वर से कहा।।
सौरन्ध्री की आखो मे खून उबल पाया, बोली-"कामान्ध होकर यह मत भूलो कि मैं एक बलिष्ठ गंधर्व की पत्नी हूं। मेरे साथ पाप लीला रचाने का विचार भी तुम्हारे लिए नाश का कारण बन सकता है। समझे ?"
___"सुन्दरी ! तुम्हारे रूप में जितनी शीतलता है, तुम्हारे कण्ठ में भी उतनी ही नम्रता होनी चाहिए। मैं तो समझता था कि तुम मुझे अपने पर आसक्त जानकर हपतिरेक से उछल पडोगी, पर देखता हूं कि तुम्हारा दिमाग प्रास्मान पर चढ गया है। गीदड के विट की प्रावश्यकता पड़े तो गीदड पहाड पर जा चढता है। इसीलिए तो कदाचित किसी ने कहा है ।
गर गदही के कान मे कह द कि मैं तभप-फिदा। - बहुत मुमकिन है कि वह भी घाम माना छोड दे ॥"