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जैन महाभारत .
है। जो काति और पराक्रम मे वासुदेव के समान है, जो भारत देश कारत्न है, और जो' मेरू पर्वत के 'सममि गोंन्तित है। उसी अर्जुन को रीजा विराट के रनवास से नपुसक बन कर जाना पड़ेगा और रनवास में नौकरी करने की प्रार्थना करनी पडेगी। ! हमारे भाग्य में क्या क्या लिखा है?" - . , . . .
___ इसके पश्चात युधिष्ठिर की दृष्टि नकूल और सहदेव पर पड़ी। दुखित हो कर पूछा--"भैया नकूल ! लुम्हारा कोमल शरीर यह दुख कैसे सहन कर सकेगा? तुम कौन सा काम करोगे " - ‘नकुल जो अब तक अपने सम्बन्ध में पूर्ण विचार कर चुका था वोला-"मैं विराट के अस्तबल मे काम करु गा। घोडी की सुधाने और उनकी देख रेख करने, मे मेरा मन लग जायेगा। घोडी के इलाज. का मुझे अच्छा ज्ञान है। किसी भी घोड़े को मैं का मे भी ला सकता हूं। फिर चाहे घोडा सवारी का हो, अथवा रस का, मभी को मै साध लिया करूगा। विराट से कह दूगा कि पाण्डवों के यहां मै अश्वपाल के काम पर लगा हुआ था. निश्चय ही मुझे अपनी पसन्द का काम मिल जायेगा।"
.... अब. सहदेव की बारी आई। युधिष्ठिर बोले - "बुद्धि में वृहस्पति और नीति शस्त्र मे शुक्राचार्य ही जिसकी समता कर सकत हैं, और मत्रणा देने मे जिसके समान कोई भी नही, ऐसा मेरा प्रिय अनुज सहदेव क्या काम करेगा ?"-युधिष्ठिर का , गला उस समय अवरुद्ध था।
" महदेव बोला - "भ्राता जी । जब सभी छोटा से छोटा कार्य करने को तैयार है, आप में महाराजाधिराज, व धर्मराज नौकर वन कर मेवा टहल करने को तैयार हो गए,” भीम भैया महावला रमोइया. अर्जुन जमा धनुर्धारी नसर्क और नकुल भैया अस्तवल का मेवक वन कर कार्य करेंगे तो फिर मुझे किस बात की परेशाना है। मैं अपना नाम नान्ति पाल रख कर विराट के चौपाया का देख भाल करने का काम कर लगा गाय बैलों को किसी प्रकार की बीमारी न होने दूंगा और जगली जानवरोन्में उनकी रक्षा किया