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जैन महाभारत
पता लगाया कि क्या कारण है। जब मुझे ज्ञात हुआ कि तुम लोगो पर आपत्ति आने वाली है, मैं वहा से चल कर आया और यह सब माया रची। जब तुम लोग मूछित अवस्था मे पड़े थे, तव कनक ध्वज द्वारा सिद्ध कृत्या तुम्हारा बध करने आई। और तुम्हे मृत समझकर, मेरे समझाने से दह वापिस लौट गई और क्रुद्ध हो कर उसने कनकध्वज की ही हत्या करदी।
- इस अवसर पर मैने जो तुम्हारी परीक्षा ली, इस से मुझे ।। ज्ञात हो गया कि तुम वास्तव मे धर्मराज हो । तुम्हे कोई परास्त न कर सकेगा। अब तुम्हारे बारह वर्ष पूर्ण हो रहे है। . तुम्हारा एक वर्ष गुप्त रहने का काल भी ठीक प्रकार व्यतीत होगा। दुर्योधन तुम्हारा पता न लगा सकेगा।"
यह कह कर देव वहाँ से चला गया । . .
. इस प्रकार कितने ही कष्ट सहन करते २ बनवास की वारहवर्ष को अवधि समाप्त हो गई। इस वीच अर्जुन ने पाशु पात विद्या । सिद्ध कर ली, मामवभी नामक जलाशय के पास युधिष्टर की अपने पिता जो देव वने गए थे, से भेंट हो गई। अपने भाई दुर्योधन को मुक्त करके अपनी विशाल हृदयता का प्रमाण दे दिया । . .. ____- यह कथा सुन कर जो कोई अपने आचार विचार. को शुद्ध करने का प्रयत्न करेगा, वह अवश्य ही धर्म पथ पर बढ सकेगा।