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पाण्डव बच गए
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जो लोए बंभणों वुत्तो, अग्गीव महिनो जहा ।
सया कुसल संदि, तं वयं बम माहणं ।।
जिन्हे कुशल पुरुषो ने ब्राह्मण कहा है, और जो संदा अग्नि के समान पूजनीय है, उन्ही को ब्राह्मण कहता हूँ ।
जो न सज्जइं आगंत, पव्ययंतो न सोयई ।
रमए अज्ज वयणाम्मि, तं व वून माहणं ।। ... जो स्वजनादि मे आसक्त नहीं होता और प्रवजित होने मैं सोच नही करता किन्तु आर्य वचनो मे रमण करता है, उसी को मैं ब्राह्मण कहता हू । . . जयारूवं जहा मढ, नित मल पावगं । . . . · रागहोस भयाईयं तं वयं बूम माहणं ।।
जिस प्रकार अग्नि से शुद्ध किया हुआ · सोना निर्मल होता है उसी प्रकार जो राग द्वेष और भयादि मे रहित है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हू ।
तर पाणे वियोणित्ता, मंग हेण य थावरे।
जो न हिंसइ तिविहेणं, तं वयं वूम माहणं ।। . __जो त्रस और स्थावर प्राणियो को मक्षेप या विस्तार मे ज़ान कर त्रिकरण त्रियोग से हिसा नहीं करता, उसी को मैं ब्राह्मण कहता हूँ। ...
कोहा वा जड़ वा हासा, लोहा वा जई वा भया । मुसं न वयई जो उ, त वयं वृम माहणं ।।
क्रोध मे. लोभ से, हास्य तथा भय से भी जो झूठ नहीं बोलता, उसी को मैं ब्राह्मण कहता हूं। . .