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पासा पलट गया
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। एक वडी सेना और अनेक नौकर चाकर लेकर कौरवो ने द्वैत वन की ओर प्रस्थान किया। दुर्योधन और कर्ण यह सोच कर फूले न समाते थे कि पॉडवो को कप्ट मे पड़े देख कर बहत आनन्द पायेगा और वे हमारे शाही ठाठ-बाठ देख कर जल उठेगे।
बन पहुच कर ऐसे स्थान पर अपने डेरे लगा दिए जो कौरवो के आश्रम से चार कोस की दूरि पर था। कुछ देर विश्राम करके वे ग्वालो की वस्तियो मे गए और चौपायो की गणना की रस्म अदा की। इसके बाद ग्वालो के खेल और नाच देख कर कुछ मनोरजन किया। फिर बन वूमने की बारी आई। घूमते घूमते वे एक जलाशय के पास जा पहुंचे वहा का स्वच्छ जल और रमणीक दृश्य देखकर दुर्योधन बहुत प्रसन्न हुआ। जब इसे ज्ञात हुआ कि पाण्डवो का पाश्रम निकट ही है, तो उसने अपने नौकरो को आदेश किया कि डेरे इस जलाशय के पट पर ही लगा दिए जाये उसने
सोचा था कि एक तो यह स्थान रमगोक है दूसरे यहा से पांडवो . के हाल चाल भी भलि प्रकार देखे जा सकेंगे।
जब दुर्योधन के नौकर चाकर जलाशय के तट पर डेरे लगाने गए, तो गधर्व राज चित्रागद ने, जिस के डेरे जलाशय के निकट ही लगे हुए थे, डे रे लगाने से रोक दिया। नौकरो ने जाकर दुर्योधन से कहा कि कोई विदेशी नरेश जल शय के पास पड़ाव डाले है, उसके नोकर हमें डेरे नहीं लगाने देते। दुर्योधन को यह मुन कर बहुत क्रोध आया और गरज कर बोला- "किस राजा की मजाल है कि हमारे डेरे लगाने से रोक दे । जाग्रो किसी की मत सुनो कोई रोके तो उसे मार कर भगा दो।" ।
आज्ञा पा कर दुर्योधन के अनुचर फिर गए और तम्बू गाडने लगे , गधर्व राज के नौकरो ने अ.कर उन्हे गेका ' जब न माने ., तो दुर्योधन के नीकरो को उन्होने बहत मारा, वे बेचारे अपने प्राण १ ले कर भाग पाये।
दुर्योधन को जब पता चला तो उसके क्रोध की सीमा न रहो, अपनी सेना ले कर जलाशय की ओर चल पड़ा।