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________________ ११० जैन महाभारत महल की सुन्दरता को देख कर सभी प्रसन्न हुए। भीमसेन ने कहा--- "भ्राता जी! महल बडा सुन्दर है। दुर्योधन ने वास्तव में हमारे लिए कितना अनुपम महल बनवाया है। लगता है अब उनके मन में भ्रातृ स्नेह जागृत हो गया है।" नकुल ने आगे बढ़ कर दीवार के प्लास्तर को स्पर्श करके प्रसन्न हो कर कहा- "और इसमें मिट्टी कितनी चिकनी लगी है। पता नहीं चलता कि यह दर्पण है या चिकनी मिट्टी।" । उसी समय युधिष्ठिर बोल उठे-"पर है यह सारी घोखे की टट्टी।" सहदेव ने आश्चर्य चकित होकर कहा- भ्राता जी! आप तो कभी ऐसी बाते कह जाते हैं कि आश्चर्य होता है। इतना बहुमूल्य सुन्दर महल है और आप कहते है इसे धोखे की टट्टी।" । अर्जुन बोल उठे-"कई लाख की लागत से तैयार हुआ होगा। ___ वाह रे पुरोचन, जी चाहता उसकी कला की प्रशसा किए जाऊ ।" "हां, यह लाख का ही बना है। युधिष्ठिर वोले शिकारी ने शिकार करने के लिए नयनाभिराम व चित्ताकर्षक जाल विछाया है।" चारो भाई युधिष्ठिर का मुंह ताकने लगे। भीम बोल पडा-"क्या कहते है भ्राता जी ! इस मे लाख की ही लागत है, यह तो कई लाख का है।" "हां हा, है लाख का ही।" द्रौपदी भी युधिष्ठिर के शब्दो पर चकित थी। उस ने कहा-"इतना सुन्दर महल है कि सभी इस की प्रशसा कर रहे हैं और महाराज बता रहे हैं इसे जाल ?वात क्या है ?" भीम प्राग्रह करने लगा युधिष्ठिर से उनकी बात जानने का। तब युधिप्ठिर नोले-यद्यपि मुझे यह ज्ञात हो गया है कि
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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