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धृतराष्ट्र की चिन्ता
मान बैठा । मुझे धोखा हो गया, मैं भटक गया ।”
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एक और धृतराष्ट्र विदुर जी की राय को न मानने पर दुखी हो रहे थे, दूसरी ओर देखिये वे विदुर जी के साथ क्या करते हैं ? -- यह उदाहरण इस बात का कि जब नाश के दिन निकट आते है तो उल्टी सूझा करती है ।
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"विनाश काले विप्रीत बुद्धि
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विदुर जी बार बार आग्रह करते कि पाण्डवों के साथ सन्धि करलो, वे कहते - " आप के बेटो ने घोर पाप किया है, ऐसा पाप जिसका उदाहरण इतिहास मे कही नही मिलता । उन के पाप से - हमारे कुल का सर्व नाश हो जायेगा । आप अब भी सम्भलिए, अपने मूर्ख बेटो को सुपथ पर लाइये । पाण्डवो को बन से वापिस बुला लीजिए, उनका राज्य उन्हे दे दीजिए । यह सब करना आप ही का कर्तव्य है ।" विदुर जी प्राय ऐसे ही उपदेश धृतराष्ट्र को दिया करते ।
विदुर जी की बुद्धिमता का उन पर भारी, प्रभाव था, अतः धृतराष्ट्र उनकी बातो को शुरु शुरु मे सुन लिया करते थे । परन्तु बार बार विदुर जी की यह बाते सुनकर धृतराष्ट्र ऊब उठे ।
एक दिन विदुर जी ने फिर वही बात छेडी तो धृतराष्ट्र भुला कर बोले - " विदुर ! तुम हमेशा पाण्डवों का पक्ष लेते हो और मेरे पुत्रो के विरुद्ध बातें करते रहते हो । इम से प्रकट होता है कि तुम हमारा भला नही चाहते, नही तो बार बार मुझे दुर्योधन का साथ छोडने को क्यो उकसाते । दुर्योवन मेरे कलेजे का टुकडा है, चाहे वह कुछ करे मै उसे नही छोड़ सकता । तुम्हारी इन बातो को सुनते सुनते मेरे कान पक गए हैं । तुम्हारी बाते न न्यायोचित 'हैं और न मनुष्य स्वभाव के अनुकूल हो । यदि हम तुम्हे अन्यायी और पाण्डव पुण्यात्मा प्रतीत होते है, तो तुम हमारे पास क्यो हो, पाण्डवो के साथ ही बन मे क्यो नही चले जाते ?"
धतराष्ट्र क्रोध से ऐसे कह कर बिना विदुर का उत्तर सुने