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यदवा का उद्भव तथा विकास
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जब गप्नचगे ने उमकी ऋहि को मुक्त कट में प्रशंमा की तब ममा मित्र उसके पास जा पहुंचे। उस समय उन देव मित्र ने अपने सभी मित्रों का दिव्य वस्त्राभपणों से मस्कार किया। जिन देख सभी मित्र पाश्चर्य चकित रह गये।
पर रमा उभ्य एत्र ने ना पहले ही स्वापानित लक्ष्मी का प्रदशन पर दिया था, किन्तु उसकी देय द्रव्य में तुलना कमी। देव द्रव्य के समक्ष उसका पानग के समान भी न था, उसका मपणे द्रव्य देव द्वारा पना जूना का माल भी न पा सका । जिम इम्यपुत्र ने बारह वप तक 'ग्रनक क्लेशों का सहन कर द्रव्य कमाया था, वह नित्री सहिन पराजित गा। पश्चात उन्म देवने अपने मित्रों ने पूछा कि 'मैन अल्प-समय में नना दध्य फंसे उपार्जन किया ? क्या तुम बता सकते हो ? 'तब मित्रो ने फा। घपया 'ग्राप ही बताएं कि द्रव्य उपार्जन कैसे किया। इसपर व न पपना नपस्या 'प्रादि या नारा विवरण सुनाया पोर कहा कि मनप के प्रभाव सो मैंने एम दिव्य हि का प्राप्त किया है और चा, नपश्चर्या पगाद्धि सदाकाल मुख देने वाली होती है। ___"पतः गजमार्ग । तपस्वियों का नप ही दीर्घ काल तक टिकता
पार प्रजनीय है । र का नाम नि पर भी तप का फल दंच लाक मंमिलना समर कमां द्वारा उपार्जन किया द्रव्य क्षणिक है और शरारना , माय उस का भी नाश हो जाता है। नन्दीपेण । इम प्रकार प्रम ने राज कन्या में कता तय राज कन्या ने उत्तर दिया कि स, सपर्म शाजा कि रहते हुए तथा ह के विनाश होने पर 21 टन मा. उसका फल मिलता ही रहना है। है महाभाग ! परा२. भात मिपा पन मीद पर कथन 'पापा सत्य है । मैं "शप (1.३५मा प्रतिमान पार पनिरप में परा का गी।